हिमस्खलन व इसके प्रकार
हिमस्खलन:- आज इस पोस्ट के माध्यम से हम आपसे हिमस्खलन के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे| हिमस्खलन
से क्या अभिप्राय है, यह कितने प्रकार का होता है तथा इससे बचाव के क्या उपाय है, इन सब के बारे में विस्तार से पढेंगे?
इससे पहले की पोस्ट में हम आप को “ज्वालामुखी और इसके प्रकार” के बारे में विस्तार से बता चुके हैं|
हिमस्खलन का अर्थ:- हिम, मलबे के ढेर तथा भारी चट्टानों के अचानक नीचे ढलान की ओर खिसकने को
हिमस्खलन कहते हैं| किसी ऐसी जगह पर जो बहुत ही ढलान वाली या एकदम स्लोप वाली सतह होती है,
बहुत तेज गति से हिम के बड़ी मात्रा में होने वाले बहाव को कहा जाता हैं।
यह स्थिति आमतौर पर उस समय पैदा होती है जब किसी ऊँचे क्षेत्र में उपस्थित हिमपुंज में अचानक अस्थिरता
उत्पन्न हो जाती है| जब ऊँचाई से हिम गिरना शुरु होने लगता है तो बाद में ढलान पर नीचे खिसकता हुआ यह
तेज गति पकड़ने लगता है और इस गिरते हुए हिम के अंदर बर्फ़ की और भी मात्रा शामिल होती जाती है।
हिमस्खलन की घटना प्रायः हिम आछादित पर्वतों पर तथा ऊंची-ऊँची पर्वत शिखरों पर घटित होती हैं । यह हिम
का खिसकता हुआ ढेर एक विशाल भारी भरकम रूप ले लेता है| यदि किसी पर्वत की ढलान पर गिरती हुई हिम
का भार, चट्टान की क्षमता से बहुत अधिक बढ़ जाता है तो हिमस्खलन की स्थिति पैदा हो जाती है।
इस प्रकार की घटना से अर्थात हिमस्खलन से बिजली के खम्बों, मकानों, सड़कों, रेल की लाइनों तथा
पुलों को बहुत भारी नुकसान होता है| बड़ी-बड़ी चट्टानों के रिहायशी इलाके में गिरने से बहुत-से लोग
घायल हो जाते हैं तथा बहुत से लोगों की मृत्यु भी हो जाती है|
हिमस्खलन के कारण
हिमस्खलन के प्रमुख कारण निम्न प्रकार से हैं:
1.- भारी हिमस्खलन का होना:- जब किसी चट्टान के उपर से बहुत बड़ी मात्रा में हिम निचे खिसकती
हुई आती है तो यह उस चट्टान को भी अपने साथ तोडती हुई लाती है जिससे हिमस्खलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है|
2.- भारी वर्षा का निरंतर होना:- बहुत अधिक तेज वर्षा के कारण वर्षा का पानी बड़ी-बड़ी चट्टानों में
रिस कर उनमे दरार पैदा कर देता है जिस कारण से हिम सहित वे चट्टानें खिसकने लगती हैं|
3.- पहाड़ों क्षेत्रों में तीव्र ढलानों को काटकर सड़कें बनाना:- जब बड़े-बड़े पहाड़ों को काटकर सड़के, ब्रिज
या रेल मार्ग बनाये जाते हैं तो उन पहाड़ों के अंदर दरार पैदा हो जाती है जिससे हिमस्खलन आने का खतरा
सदैव बना रहता है|
4.- ऊँचे अक्षांशों के डेल्टों में अधिक अवसाद होने के कारण:- ऊँचे अक्षांशों के डेल्टों में अधिक अवसादों के
कारण भी हिमस्खलन आने का खतरा हमेशा बना रहता है|
हिमस्खलन के प्रकार:-
(1)- हिमस्खलन
इस प्रकार के हिमस्खलन ऊँचे-ऊँचे पर्वतीय इलाकों में घटित होते हैं । जब कभी शरद ऋतु में ऊँचे पर्वतीय
ढलानों पर बड़ी मात्रा में हिम इकट्ठी हो जाती है तो यह हिम निचे की ओर खिसकने लगती है तथा हिमस्खलन
की स्थिति पैदा हो जाती है ।
(2)- मलबे के ढेर द्वारा हिमस्खलन
चट्टानों के लगातार अक्षय होने के कारण ढलानों पर अथवा ढलानों के निचले भाग में बहुत सारा मलबा इकठ्ठा
हो जाता है| यदि उस मलबे पर भारी मात्रा में हिमपात हो जाये तो हिम और मलबा नीचे की ओर अचानक
खिसकने लग जाता है| इसको मलबा हिमस्खलन कहते हैं।
Types of Avalanches
(3)- शुष्क हिमस्खलन
शुष्क हिमस्खलन की घटना ऊँचे शुष्क पर्वतों में घटित होता है। जब कभी ऊँचे पर्वतों में खड़े ढलानों में बहुत
अधिक मात्रा में बर्फ इकट्ठी हो जाती है तो यह हिम नीचे की ओर खिसकने लगती है| इससे शुष्क हिमस्खलन
का खतरा पैदा हो जाता है। इस प्रकार के हिमस्खलन होने से वायुमंडल के अंदर बर्फीला सफेद धुआँ फैल जाता है ।
(4)-आर्द्र हिमस्खलन
अत्यधिक ठण्ड के मौसम में अधिक हिमपात होने से या अधिक हीम-वर्षा के होने से या फिर बर्फ के पिघलने से
आर्द्र-हिमस्खलन की स्थिति पैदा हो जाती है| इस प्रकार के हिमस्खलन की घटना प्रायः शीतोष्ण कटिबंधीय
पर्वतों में अक्सर घटित होती रहती हैं ।
(5)- ग्लेशियर या हिमनद हिमस्खलन
जब हिमनद के अगले भाग में अचानक हिम टूट कर गिर जाती है तो इस प्रकार से होने वाले हिमस्खलन को ग्लेशियर
या हिमनद हिमस्खलन कहते है। इस प्रकार के हिमस्खलन प्राय: हिमनदीय क्षेत्रों में घटित होते हैं ।
भारत में ये हिमस्खलन ज्यादातर दीर्घ हिमालय तथा कराकोरम में घटित होते हैं|
हिमस्खलन की रोकथाम करने के उपाय:-
हिमस्खलनों की रोकने के लिये निम्न उपाय सुझाये जा सकते हैं:
(क). मोटी लोहे की तारों का जाल बनाकर हिमस्खलनों की रोकथाम करना:-
इस प्रकार के उपाय जम्मू-कश्मीर राजमार्ग पर रामसू नामक कस्बे के पास लोहे के तारों का जाल बनाकर
हिमस्खलन रोकने के लिए किया गया है। लोहे की तारों से बने जाल से टकराकर हिम एक सीमित क्षेत्र
तक ही नीचे गिर पाती है जिससे जान- माल का बड़ी मात्रा में नुकसान होने से बच जाता है।
Avalanches Control Strategy
(ख) अत्याधुनिक वैज्ञानिक यंत्रों के उपयोग से:-
अत्याधुनिक वैज्ञानिक यंत्रों के उपयोग से जिन्हें सॉफ्टवेयर के साधन भी कहते हैं, के द्वारा ऐसे क्षेत्रों का पता
लगाया जा सकता है जिनमें प्रायः हिमस्खलन का रिस्क अधिक होता है।
इस प्रकार की भविष्यवाणी करने से हिमस्खलन से होने वाली हानि को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
(ग) अन्य बचाव के साधनों का प्रयोग करके:-
हिमस्खलन वाले क्षेत्रों का पता लगा कर इनमें अधिक से अधिक वृक्षारोपण किया जा सकता है, ढलानों को
काटकर चकोर रूप देना या चबूतरे का आकार प्रदान करना, कंक्रीट की मजबूत दीवार का निर्माण करना,
मोटे लोहे के तारों का जाल बनाना इत्यादि बचाव के साधन सम्मिलित हैं।
इन उपरोक्त उपायों के इलावा हिमस्खलनों के बारे में ठीक समय पर दी गई भविष्यवाणी से भी इन आपदाओं
के विपरीत प्रभाव को बहुत हद तक कम किया जा सकता है ।
यूरोपीयन देशों में जैसे कि फ्रांस, जर्मनी, आस्ट्रेलिया आदि, हिमस्खलन की रोकथाम के बड़े ठोस उपाय किये गये हैं।
भारत में भी हिमस्खलन से प्रभावित इलाकों में इस तरह के उपाय किये जाने चाहिए जिससे जान और माल की होने
वाली बड़ी हानि से बचा जा सके| इस दिशा में भारत सरकार के द्वारा भी जितने अधिक से अधिक कार्य किये जाये
मानव समाज की भलाई के लिये ये उतना ही बेहतर साबित होगा।