हिंदी व्याकरण

स्वर संधि की परिभाषा व भेद

स्वर संधि की परिभाषा व भेद
Written by Rakesh Kumar

स्वर संधि की परिभाषा व भेद

 

स्वर संधि की परिभाषा व भेद:- आज हम आपको स्वर संधि के बारे में बतायेंगे। स्वर संधि किसे कहतें हैं? इसका क्या अर्थ एवं परिभाषा है? इसके कितने भेद हैं? इन उपरोक्त सभी विषयों के बारे में उदाहरण सहित विस्तार से चर्चा करेंगे| इससे पिछली पोस्ट में हमने आपको ‘संधि की परिभाषा व भेद’ के बारे में बताया था| यदि आपको संधि की परिभाषा व भेद के बारे में नहीं पता है तो आपको वह पोस्ट अवश्य ही पढनी चाहिए|

हिंदी भाषा में स्वर संधि का अर्थ है स्वर का स्वर से मेल अर्थात दो स्वरों के मेल को स्वर संधि कहते हैं। दुसरे शब्दों में यह भी कह सकतें हैं कि दो स्वरों के मेल से उत्पन्न हुआ विकार स्वर संधि कहलाता है|

जैसे:- अ + आ = आ

स्वर संधि की परिभाषा व भेद:-

“दो निकटवर्ती वर्णों के मेल से जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं।”

जैसे:-

हस्त + अंतरण = हस्तान्तर्ण

पाठ + शाला = पाठशाला

युग + अंतर = युगांतर

महा + ऋषि = महर्षि

दिवस + अंत = दिवसांत

देव + ऋषि = देवर्षि

रजनी + ईश = रजनीश

उदय + अचल = उदयाचल

स्वर संधि पांच प्रकार की होती है:-

 

(1).दीर्घ संधि

(2).गुण संधि

(3).वृद्धि संधि

(4).यण संधि

(5).अयादि संधि

दीर्घ संधि

 

(1).  दीर्घ संधि:- जब एक ही स्वर के दो रूप ह्रस्व तथा दीर्घ एक दुसरे के बाद आ जाये  अर्थात यदि अ आ से परे अ आ, इ ई से परे इ ई और उ ऊ से परे उ ऊ हो तो, वे  क्रमश: आ, ई तथा ऊ हो जाते है।

दीर्घ संधि के उदाहरण:-

युग + अंतर = युगांतर

हिम +आलय =हिमालय

राष्ट्र + अध्यक्ष = राष्ट्राध्यक्ष

विद्या +अर्थी =विद्यार्थी

नयन + अभिराम = नयनाभिराम

परीक्षा +अर्थी =परीक्षार्थी

प्रति + इक्षित = प्रतीक्षित

परम +अणु =परमाणु

लघु + उत्तम = लघुत्तम

पुस्तक + आलय =पुस्तकालय

कटु + उक्ति = कटुक्ति

परम + आत्मा =परमात्मा

सरयू + उर्मि = सर्यूर्मी

हरि + ईश =हरीश

प्रति + इत = प्रतीत

अति + इव =अतीव

अस्त + अचल = अस्ताचल

रजनी + ईश =रजनीश

गुरु + उपदेश = गुरूपदेश

सु + उक्ति =सूक्ति

लोहित + अंग = लोहितांग

गुरु + उपदेश =गुरूपदेश

रवि + इंद्र = रविन्द्र

लघु + ऊर्मि =लघूर्मि

वधु + उक्ति = वधुक्ति

(2). गुण संधि:- गुण संधि में भिन्न-भिन्न स्थानों से उच्चारित होने वाले दो स्वरों के बीच संधि होती है| और भिन्न गुण वाला एक नया स्वर उत्पन्न होता है| यदि अ, आ से परे इ, ई ,उ, ऊ तथा ऋ आए हों तो, वे  क्रमशः ए, ओ और अर् हो जाते  है।

गुण संधि के उदाहरण:-

देव + ईश = देवेश

सुर + इंद्र = सुरेंद्र

सूर्य + उदय = सूर्योदय

महा + इंद्र =महेंद्र

मृग + इंद्र =

सुर + ईश =सुरेश

मानव + उचित = मानवोचित

गण +ईश =गणेश

राका +ईश =राकेश

परम +ईश्वर =परमेश्वर

पर +उपकार =परोपकार

महा +उत्सव =महोत्सव

वीर +उचित =वीरोचित

महा +उदय =महोदय

नव +ऊढ़ा =नवोढ़ा

सप्त ऋषि =सप्तर्षि

देव +ऋषि =देवर्षि

महा +ऋषि =महर्षि

पाठ + उपयोगी = पाठोपयोगी

ब्रह्म +ऋषि =ब्रह्मर्षि

वीर + उचित = वीरोचित

वृद्धि संधि

(3). वृद्धि संधि:-यदि अ, आ से परे ए ,ऐ तथा ओ, औ आये हो तो, वे  क्रमशः ऐ तथा औ हो जाते  है।  इस प्रकार ऐ तथा औ वृद्धि स्वर कहलातें हैं|

वृद्धि संधि के उदाहरण:-

एक + एक = एकैक

मत + एक्य = मतैक्य

सदा + एव = सदैव

परम + ओजस्वी = परमौजस्वी

तथा + एव = तथैव

वसुधा + एव = वसुदैव

मत + ऐक्य = मतैक्य

शुद्ध + ओदन = शुद्धौदन

लोक + एषणा = लोकैषणा

जल + ओक = जलौक

परम + औषधि = परमौषधि

दंत + औष्ठ = दंतौष्ठ

परम + औदार्य = परमोदार्य

बिंब + ओष्ठ = बीम्बौष्ठ

महा + औज = महौज

लोक + एषणा = लोकैषणा

जल + औघ = जलौघ

 

(4).यण संधि:- कुछ स्वर आपस में संधि करने पर य व र आदि व्यंजनों में बदल जाते हैं| यदि इ, ई से परे कोई भिन्न स्वर हो तो, इ, ई को ‘य्‘ , उ ऊ से परे कोई भी भिन्न स्वर हो तो, उ ऊ को ‘व्‘ तथा ऋ से परे कोई भिन्न स्वर हो तो, ऋ को ‘र्‘ हो जाता है ।

यण संधि के उदाहरण:-

वि + अग्र = व्यग्र

प्रति + एक =प्रत्येक

अधि + अक्षर = अध्यक्षर

यदि + अपि =यद्यपि

इति + आदि =इत्यादि

अति + अल्प = अत्यल्प

प्रति + उत्तर =प्रत्युत्तर

रीती + अनुसार = रीत्यनुसार

अति + अंत =अत्यंत

परि + अंक = पर्यक

अति + आचार =अत्याचार

अभी + उदय =अभ्युदय

प्रति + ऊष =प्रत्यूष

सु + आगत =स्वागत

अभि + अंतर = अभ्यंतर

गुरु + आदेश =गुर्वादेश

परि + अटन = पर्यटन

मनु + अंतर =मन्वंतर

अनु + एषण =अन्वेषण

अनु + अय =अन्वय

मातृ + आज्ञा =मात्राज्ञा

पितृ + आदेश =पित्रादेश

पितृ + अनुमति =पित्रनुमति

 

अयादि संधि

 

(5). अयादि संधि:-यदि ए, ऐ तथा ओ, औ से परे कोई भिन्न स्वर आया हो तो ए को अय्, ऐ को आय्, ओ को अव् तथा औ को आव् हो जाता है ।

अयादि संधि के उदाहरण:-

विनै + अक = विनायक

ने + अन= नयन

शे + अन= शयन

चे + अन= चयन

नै + अक= नायक

नै + इका= नायिका

गै + अक= गायक

पो + अन= पवन

भो + अन= भवन

भो + उक= भावुक

हो + अन= हवन

हो + इष्य= हविष्य

पौ + अन= पावन

पौ + अक = पावक

नौ + इक= नाविक

स्वर संधि की परिभाषा व भेद:-

हिंदी व्याकरण में उपरोक्त स्वर संधियों के अतिरिक्त कुछ और भी स्वर संधियां हैं:-

 

  1.  पररूप संधि
  2.  वर्ण आगम संधि
  3.  लघुभाव संधि

 

1.- पररूप संधि:- हिंदी व्याकरण में शब्दों में कहीं-कहीं अ, आ के बाद ए या हो के आने पर अ या आ बाद वाले ए या ओ में मिलकर एक हो जाते हैं, तो उसे पररूप संधि कहते हैं ।

पररूप संधि के उदाहरण:-

लूट + एरा = लुटेरा

सांप + एरा = सपेरा

चाचा + एरा =चचेरा

मामा + एरा =ममेरा

अधर + ओष्ठ =अधरोष्ठ

शुद्ध +ओदन =शुद्धोदन

 

  1. वर्ण आगम संधि:- हिंदी भाषा के कुछ शब्दों में समास होते समय प्रथम पद के अंतिम वर्ण में स्थित ‘अ‘ का ‘आ‘ हो जाता है इसे वर्ण आगम संधि कहते हैं ।

 

वर्ण आगम संधि के उदाहरण:-

मूसल + धार =मूसलाधार

फट + फट =फटाफट

दीन + नाथ =दीनानाथ

विश्व + मित्र =विश्वामित्र

धड़ + धड़ =धड़ाधड़

काय + कल्प =कायाकल्प

 

लघुभाव संधि

 

(3).लघुभाव संधि:- प्रत्यय जोड़ने या समस्त पद बनाते समय आ को अ में, ई को उ में, ए को इ में तथा ओ को उ में बदला जाता है तो, उसे लघु भाव संधि कहते हैं ।

 

लघुभाव संधि के उदाहरण:-

कान  + कटा = कनकटा

काला + मुंह = कलमुंहा

मूंछ  + कटा = मुंछकटा

घोड़ा + दौड़ = घुड़दौड़

भीख + आरी = भिखारी

आधा + खिला = अधखिला

एक + तीस = इकतीस

एक + तारा = इकतारा

मीठा + आई = मिठाई

लोहा + आर = लुहार

मोटा + आपा = मोटापा

दूध + मुंहा = दुधमुंहा

खेल + आड़ी = खिलाड़ी

निष्कर्ष

निष्कर्ष के तौर पर हम यह कह सकते हैं कि स्वर का स्वर से मेल अर्थात दो स्वरों के मेल को स्वर संधि कहते हैं। दुसरे शब्दों में यह भी कह सकतें हैं कि दो स्वरों के मेल से उत्पन्न हुआ विकार स्वर संधि कहलाता है| परिभाषा के तौर पर  देखें तो, “दो निकटवर्ती वर्णों के मेल से जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं।” स्वर संधि पांच प्रकार की होती है| हिंदी व्याकरण में उपरोक्त स्वर संधियों के अतिरिक्त, पररूप संधि, वर्ण आगम संधि तथा लघुभाव संधि, ये तीन    प्रकार की  ओर भी स्वर संधियां होती हैं

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