हिंदी व्याकरण

स्वर की परिभाषा व भेद

स्वर की परिभाषा व भेद
Written by Rakesh Kumar

स्वर की परिभाषा व भेद

 

इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको,  स्वर की परिभाषा व भेद,   स्वर किसे कहतें हैं, स्वर की क्या

परिभाषा है, हिंदी व्याकरण में स्वर का क्या महत्तव है, के बारे में विस्तार से बतायेंगे| इससे पहले हम

आपको ‘क्रिया विशेषण की परिभाषा व भेद’ के बारे में पहली पोस्ट में बता चुके हैं | आज hindigkpdf  आपसे स्वर के

बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे|

स्वर –“ स्वर उन वर्णों को कहतें हैं जिनका उच्चारण बिना किसी अन्य ध्वनि की सहायता के स्वतंत्र रूप

से होता है, स्वर कहलातें हैं।‘’

स्वरों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता है। इनकी अपनी मात्राएं होती हैं। सिर्फ अ की अपनी कोई मात्रा

नहीं होती है।

हिंदी भाषा में स्वरों की संख्या 11 होती है ।

जैसे:- अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ए,ऐ,ओ,औ ।

स्वर के तीन भेद होते हैं –

1.- ह्रस्व स्वर

2.- दीर्घ स्वर

3.- प्लुत स्वर

 

1.- ह्रस्व स्वर -जिन स्वरों का उच्चारण करने में अर्थात बोलने में कम से कम समय लगता हो  वे  ह्रस्व

स्वर कहलातें हैं।

जैसे -अ,इ,उ,ऋ ।

2.- दीर्घ स्वर -जिन स्वरों का उच्चारण करते समय   अर्थात बोलते समय  ह्रस्व स्वर से दुगुना समय

लगे उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं।

जैसे -आ,ई ,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ।

3.- प्लुत स्वर -जिन स्वरों का उच्चारण करने में अर्थात बोलने में दीर्घ स्वर से दुगुना तथा ह्रस्व स्वर से

तिगुना समय लगता हो  उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं । प्लुत स्वर को ( ऽ ) चिह्न के द्वारा  दर्शाया जाता है।

जैसे- ओऽम्।

नोट- अं और अ: को अयोगवाह कहा जाता है।

अं का उच्चारण अनुस्वार के रूप में होता है तथा इसका चिन्ह (ं) के रूप में होता है और अ: का उच्चारण

‘ह’ ध्वनि के समान होता है तथा इसका चिन्ह विसर्ग (:) होता है।  विसर्ग (:) का प्रयोग प्रायः संस्कृत भाषा

में होता है।

स्वर की परिभाषा व भेद

 

स्वरों का वर्गीकरण सात प्रकार से किया जाता है-

1.- जिह्वा की स्थिति के आधार पर

2.- रचना के आधार पर

3.- मुख खुलने व बंद होने का आधार पर

4.- होठों की बनावट /स्थिति के आधार पर

5.- जिह्वा की पेशियों में तनाव के आधार पर

6.- स्वर तंत्रिकाओं के कंपन के आधार पर

7.- उच्चारण स्थान के आधार पर

 

1.- जिह्वा की स्थिति के आधार पर–

स्वरों को जिह्वा की स्थिति के आधार पर तीन प्रकार से वर्गीकृत किया गया है:-

 

(1).-अग्र स्वर- वे स्वर जिनका उच्चारण करते समय जिह्वा के अग्रभाग का प्रयोग किया जाता है। जैसे- इ,

ई, ए, ऐ।

 

(2).-मध्य स्वर- वे स्वर जिन का उच्चारण करते समय जिह्वा के मध्य भाग का प्रयोग किया जाता है। जैसे- अ ।

 

(3).- पश्च स्वर- वे स्वर जिन का उच्चारण करते समय जिह्वा के पश्च भाग का प्रयोग होता है। जैसे- आ, उ, ऊ,

ओ,औ ।

2.- रचना के आधार पर:-

रचना के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण दो प्रकार से किया जा सकता है-

(1).- मूल स्वर- वे स्वर जिनकी रचना किसी अन्य स्वर से नहीं हुई है मूल स्वर कहलाते हैं। जैसे- अ, इ, उ, ऋ ।

(2).-  संयुक्त स्वर- वे स्वर जिनकी रचना अन्य स्वरों  से हुई है संयुक्त स्वर कहलातें हैं।

जैसे- ए, ऐ, ओ, औ ।

 

3.- मुख के खुलने व बंद होने के आधार पर स्वरों के भेद

 

मुख के खुलने व बंद होने के आधार पर स्वरों को चार तरह  से वर्गीकृत किया जा सकता है –

(1).- विवृत–  वे स्वर जिनका का उच्चारण करते समय मुख द्वार अधिक खुला रहता है उन्हें विवृत स्वर

कहतें हैं। जैसे- आ ।

(2).- अर्धविवृत- अर्धविवृत वे स्वर होतें हैं जिन का उच्चारण करते समय मुख द्वार विवृत स्वर की तुलना

में कम खुला रहता है। जैसे- अ, ऐ,ओ,औ ।

(3).- संवृत– वे स्वर जिन का उच्चारण करते समय मुख द्वार सबसे कम खुलता है संवृत स्वर कहलातें हैं।

जैसे- इ, ई, उ, ऊ आ।

(4).- अर्ध संवृत- अर्ध संवृत स्वर उन  स्वरों को कहतें हैं जिन का उच्चारण करते समय मुख द्वार संवृत की

तुलना में अधिक खुलता है। जैसे- ए ।

 

4.- होठों की बनावट की स्थिति के आधार पर:-

होठों की बनावट की स्थिति के आधार पर स्वरों को तीन प्रकार से वर्गीकृत किया गया है –

(1).- वर्तुल स्वर– जिन स्वरों का उच्चारण करते समय होठों की  बनावट वृतुलाकार की होती है उन्हें वर्तुल

स्वर कहतें हैं ।जैसे- उ, ऊ, ओ, औ ।

(2.)- अवर्तुल स्वर- इन स्वरों का उच्चारण करते समय होठों की स्थिति दीर्घ वृत्त के समान होती है। जैसे- इ,

ई, ए, ऐ |

(3).- अर्धवर्तुल स्वर- जिन स्वरों का उच्चारण करते समय होठों की स्थिति की बनावट अर्धवृत्तालुकार के

सामान होती है उन्हें अर्धवर्तुल स्वर कहतें हैं। जैसे- आ  ।

 

 5.- जिह्वा की पेशियों के तनाव के आधार पर

 

जिह्वा पेशियों के तनाव के आधार पर स्वरों को दो प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता  है –

(1).- शिथिल- जिन स्वरों का उच्चारण करते समय जिह्वा की पेशियों पर तनाव नहीं पड़ता। जैसे- अ, इ, उ ।

(2). कठोर -जिन स्वरों का उच्चारण करते समय जिह्वा की पेशियों पर तनाव पड़ता है। जैसे- आ,ई, ऊ।

 

6.- स्वरतंत्रियों के कंपन के आधार पर स्वर के भेद

स्वरतंत्रियों के कंपन के आधार पर वर्णों को दो प्रकार से वर्गीकृत किया गया है –

(1).- घोष- जिन स्वरों का उच्चारण करते समय स्वर तंत्रिया झंकृत होती हैं। सभी स्वरों को घोष वर्ण माना गया है।

(2). अघोष-जिन वर्णों का उच्चारण करते समय स्वर तंत्रियां झंकृत नहीं होती हैं।

 

7.- उच्चारण स्थान के आधार पर:-

उच्चारण स्थान के आधार पर स्वरों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-

(1).-कंठ– अ, आ

(2).- तालव्य– इ, ई

(3).- मूर्धन्य– ऋ

(4).- ओष्ठ्य– उ, ऊ

(5).- नासिक्य– अं

(6).-  कंठ तालव्य– ए, ऐ

(7).- कंठौष्ठ्य– ओ, औ।

 

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