Geography

सूर्य ग्रहण क्यों होता है

सूर्य ग्रहण क्यों होता है
Written by Rakesh Kumar

सूर्य ग्रहण क्यों होता है

सूर्य ग्रहण क्यों होता है:- आज की इस पोस्ट के माध्यम से हम आप के साथ सूर्य ग्रहण क्यों होता

है के बारे में  चर्चा करेंगे| सूर्य ग्रहण क्यों होता है, सूर्य ग्रहण होने के क्या कारण है तथा सूर्य ग्रहण

कितने प्रकार का होता है इन सब के बारे में विस्तार से पढेंगे?

इससे पहले की पोस्ट में हम आप को “ दिन और रात कैसे  बनते हैं “ के बारे में विस्तार से बता चुके हैं|

सूर्य ग्रहण कैसे लगता है:-

चंद्रमा जब  सूर्य और पृथ्वी के बीच से गुजरता है  तथा जब ये तीनो बिलकुल एक सीधी रेखा में होते

तब सूर्य ग्रहण  होता है|

सूर्य व पृथ्वी के बीच में जब  चंद्रमा आ जाता है तो चंद्रमा के पीछे सूर्य कुछ समय के लिए ढंक जाता है

तथा पृथ्वी के कुछ भाग पर इसकी परछाई पड़ती है  | सूर्य ग्रहण इस घटना को  ही कहा जाता है|

पृथ्वी सूर्य के चारो और चक्कर काटती रहती है और चंद्रमा पृथ्वी के चारो और चक्कर काटता रहता है|

चंद्रमा कभी-कभी सूर्य और धरती के बीच में आ जाता है जिससे सूर्य का प्रकाश धरती के कुछ हिस्से पर

नहीं पहुंच पाता|

सूर्य ग्रहण कब होता है:-

विज्ञानिक घटना के अनुसार जब चन्द्रमा सूर्य व पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो कुछ समय के लिए

चन्द्रमा के पीछे सूर्य ढक जाता है, इस घटना को ही सूर्य ग्रहण कहा जाता है।

धरती सूर्य की परिक्रमा करती रहती है तथा चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता रहता है । कभी-कभी

सूरज और धरती के बीच में चन्द्रमा आ जाता है।  तथा वह सूर्य के आंशिक या सारे प्रकाश को रोक

लेता है इस कारण से धरती पर छाया फैल जाती है। यही घटना सूर्य ग्रहण कहलाती है।

हमेशा सूर्य ग्रहण अमावस्या  के दिन ही होता है।

सूर्य ग्रहण कैसे लगता है

Types of solar eclipse सूर्य ग्रहण के प्रकार 

 सूर्य ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं-

1.-  पूर्ण सूर्य ग्रहण

2.-  आंशिक सूर्य ग्रहण

3.-  वलयाकार सूर्य ग्रहण

1.-  पूर्ण सूर्य ग्रहण:-

जब चन्द्रमा पृथ्वी के बहुत पास में रहते हुए सूर्य तथा पृथ्वी के बीच में आ जाता है तथा चन्द्रमा पृथ्वी

को पूरी तरह से अपनी छाया के दायरे में ले लेता है तो उस समय पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है|

इस तरीके से  पृथ्वी तक सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँच पाता है| अंधकार जैसी स्थिति धरती पर उत्पन्न हो

जाती है| पृथ्वी पर तब पूरा सूरज दिखाई नहीं देता। इस तरह से जो ग्रहण बनता है वह पूर्ण सूर्य ग्रहण

कहलाता है।

2.- आंशिक सूर्य ग्रहण:-

जब चन्द्रमा सूर्य व पृथ्वी के बीच में इस प्रकार आ जाता है कि सूर्य का कुछ भाग पृथ्वी से दिखाई नहीं

देता है आंशिक सूर्यग्रहण कहलाता है| सूर्य के केवल कुछ भाग को ही चन्दमा अपनी छाया में ले पाता है।

इस अवस्था में सूर्य का कुछ भाग ग्रहण से अप्रभावित रहता है तथा सूर्य का कुछ भाग ग्रहण ग्रास में

रहता हैं| पृथ्वी के उस भाग में लगने वाले ग्रहण को आंशिक सूर्य ग्रहण कहते है।

3.- वलय आकार का सूर्य ग्रहण:-

जब चन्द्रमा पृथ्वी से काफ़ी दूर रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है तब उस समय वलयाकार

सूर्य ग्रहण होता है| इस स्थिति में सूर्य का मध्य भाग ही छाया क्षेत्र में रहता है|

चन्द्रमा द्वारा सूर्य पूरी तरह ढका दिखाई नहीं देता है बल्कि पृथ्वी से देखने पर सूर्य के बाहर का क्षेत्र

प्रकाशमान दिखाई देता है तथा सूर्य वलयकार या कंगन के रूप में चमकता दिखाई देता है।

इस प्रकार से एक कंगन या रिंग के आकार में बने सूर्यग्रहण को वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते है।

खगोल शास्त्रीयों के मत के अनुसार सूर्यग्रहण

सूर्य ग्रहण कैसे होता है:-

खगोल शास्त्रियों के मत के अनुसार अट्ठारह वर्ष तथा अट्ठारह दिन की समयावधि में 41 सूर्य ग्रहण

होते हैं तथा 29 चन्द्रग्रहण हो सकते हैं। एक वर्ष की समयअवधि में पांच सूर्यग्रहण और दो चन्द्रग्रहण

हो सकते हैं।

18 वर्ष तथा 11 दिन का समय बीत जाने पर प्रत्येक ग्रहण पुन: होता है। किन्तु यह निश्चित नहीं हैं कि

वह अपने पहले के स्थान में ही हो।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण में सूर्य ग्रहण:-

लार्कयर नामक वैज्ञानिक नें सन 1968 में सूर्य ग्रहण के समय की गई खोज के जरिये हीलियम गैस

की उपस्थिति का वर्ण मंडल में पता लगाया था।

अधिक से अधिक सम्पूर्ण सूर्यग्रहण की वास्तविक अवधि 11 मिनट तक ही हो सकती है उससे अधिक

नहीं हो सकती। अधिकतम 250 किलोमीटर चौड़े तथा दस हजार किलोमीटर लम्बे क्षेत्र में ही सूर्यग्रहण

देखा जा सकता है।

सूर्य ग्रहण क्यों होता है:-

ग्रहण के समय में ही वैज्ञानिकों को नये नये तथ्यों पर कार्य करने का अवसर मिलता है तथा ग्रहण ही वह

समय होता है जब ब्राह्मंड के अंदर अनेक प्रकार की अद्भुत एवं विलक्षण घटनाएं घटित होतीं हैं|

पौराणिक काल में सुर्यग्रहण :-

खगोलीय संरचना पर आधारित कलैन्डर बनाने की आवश्कता पूर्व वैदिक काल में भी अनुभव की गई।

ऋग्वेद में मिले उल्लेख के अनुसार अत्रि ऋषि के परिवार के पास यह ज्ञान उपलब्ध था। इस प्रकार से

यह कहा जा सकता है कि ग्रहण के ज्ञान को देने वाले महर्षि अत्रि प्रथम आचार्य थे।

About the author

Rakesh Kumar