हिंदी व्याकरण

संधि की परिभाषा व भेद

संधि की परिभाषा व भेद
Written by Rakesh Kumar

   संधि की परिभाषा व भेद   

 

संधि की परिभाषा व भेद:-आज हम संधि की परिभाषा व भेदों के बारे में चर्चा करेंगे। संधि किसे कहतें हैं? इसकी क्या परिभाषा है? तथा संधि के कितने भेद हैं? हिंदी व्याकरण में संधि का क्या महत्तव है, इन सभी विषयों के बारे में विस्तार से चर्चा की जाएगी| इससे पहले हमने आप को ‘अव्यय की परिभाषा व भेद’ के बारे में बताया था| अव्यय के बारे में जानने के लिए आप को हमारी वह पोस्ट अवश्य ही पढनी चाहिए|

 संधि का अर्थ:-

हिंदी भाषा में संधि का अर्थ:- संधि का अर्थ मेल होता है अर्थात दो वर्णों के मेल को संधि कहते हैं।

संधि की परिभाषा:-‘दो निकटवर्ती वर्णों के मेल से जो विकार या परिवर्तन होता है, उसे संधि कहते हैं’|

जैसे:-

सम् + तोष = संतोष

विद्या + आलय= विद्यालय

देव + इंद्र = देवेन्द्र

नर + इंद्र= नरेंद्र

भानु + उदय = भानूदय

गण + ईश = गणेश

रवि + इंद्र = रवीन्द्र

महा + ईश= महेश

उत् + ज्वल =उज्ज्वल

संधि के  भेद

संधि तीन प्रकार की होती है:-

1.-स्वर संधि

2.-व्यंजन संधि

3.-विसर्ग संधि

अब हम, स्वर संधि, व्यंजन संधि तथा विसर्ग संधि का बारी-बारी से  गहराई से अध्ययन करेंगे|

स्वर संधि:- दो निकटवर्ती स्वरों के मेल से जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं। जैसा कि इसके नाम से विदित होता है स्वर का स्वर के साथ मिलान होने से जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहतें हैं|

जैसे:-

नारी + इंदु = नारींदु

हिम + आलय = हिमालय

पाठ + शाला = पाठशाला

नव + आगत = नवागत्

महा + ऋषि = महर्षि

प्रति + आशा = प्रत्याशा

सु + उक्ति = सूक्ति

सुर + ईश = सुरेश

देव + ऋषि = देवर्षि

महा + आत्मा = महात्मा

रजनी + ईश = रजनीश

प्रति + आशा = प्रत्याशा

स्वर संधि पांच प्रकार की होती है:-

(1). दीर्घ संधि

(2).गुण संधि

(3).वृद्धि संधि

(4).यण संधि

(5).अयादि संधि

व्यंजन सन्धि

व्यंजन सन्धि:- ‘किसी व्यंजन के साथ व्यंजन या स्वर का मेल होने से जो विकार या परिवर्तन  होता है, उसे व्यंजन सन्धि कहते हैं’|

जैसे :-

दिक् + गज = दिग्गज

उत् + ज्वल =उज्ज्वल

वाक् + ईश = वागीश

षट + यंत्र = षडयंत्र

उत् + लास = उल्लास

दिक् + अम्बर = दिगम्बर

अच् + अन्त = अजन्त

सत + भाव = सदभाव

षट् + आनन = षडानन

जगत + ईश = जगदीश

सत् + आचार = सदाचार

उत् + हार = उद्धार

सत् + चरित्र = सच्चरित्र

राम + अयन = रामायण

परि + मान = परिमाण

सम् + सार = संसार

तत् + लीन = तल्लीन

सम् + योग = संयोग

उत् + घाटन = उद्घाटन

सम् + तोष = संतोष

स्वयम् + वर = स्वयंवर

सम् + रक्षा = संरक्षा

 

विसर्ग सन्धि

 

विसर्ग सन्धि:- ‘विसर्ग के साथ किसी स्वर या व्यंजन के मेल से जो विकार या परिवर्तन होता है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं’|

जैसे :-

निः + रव = नीरव

यश: + दा = यशोदा

निः + रोग = नीरोग

मन: + योग = मनोयोग

मनः + विकार = मनोविकार

दु: + उपयोग = दुरूपयोग

निः + रस = नीरस

अध: + गति = अधोगति

दु: + चरित्र = दुश्चरित्र

निः + छल = निश्छल

धनु: + टंकार = धनुष्टंकार

धनु: + ज्ञान = धनुर्ज्ञान

निः + ठुर = निष्ठुर

मन: + रथ = मनोरथ

पुरः + हित = पुरोहित

नि: + आहार = निराहार

मनः + रम = मनोरम

चतु: + पाद = चतुष्पाद

दुः + बोध = दुर्बोध

नम: + कार = नमस्कार

निः + गुण = निर्गुण

नि: + आधार = निराधार

वन: + पति = वनस्पति

निः + धन = निर्धन

निः + झर = निर्झर

नि: + आधार = निराधार

मनः +दशा =मनोदशा

तत: + एव = ततएव

निः + ठुर = निष्ठुर

तिर + कार = तिरस्कार

निः + स्वार्थ = निस्वार्थ

दु: + परिणाम = दुष्परिणाम

निः +पाप = निष्पाप

निः + तेज = निस्तेज

 

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Rakesh Kumar