रस के अंगो का वर्णन
रस के अंगो का वर्णन:- आज इस लेख के माध्यम से हम आपसे रस के अवयव के बारे में चर्चा करेंगे। रस के अंग किसे कहते हैं, इसका क्या अर्थ एवं परिभाषा है तथा ये कितने प्रकार के होते हैं, इन सब के बारे में विस्तार से पढेंगे|
इससे पहले की पोस्ट के माध्यम से हम “सूक्ष्म अर्थ भेद वाले शब्द” के बारे में विस्तार से पढ़ चुके हैं।
रस के अवयव का अर्थ:-
जिस तरह से हमारा यह शरीर आत्मा के बिना जीवित नहीं रह सकता, ठीक उसी प्रकार से रस के बिना हिंदी भाषा का काव्य शास्त्र भी निर्जीव है। रस को ही काव्य शास्त्र की आत्मा माना गया है।
रस के अभाव में काव्य शास्त्र अपना अस्तित्व खो देता है अर्थात् इसका अपना शरीर निर्जीव हो जाता है| इसलिए काव्य में रस का होना अति आवश्यक है। रस के आभाव हम कविता की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं |
रस की परिभाषा:-
किसी कविता का पाठ करते समय या सुनते समय जिस अलौकिक आनंद का अनुभव होता है, उसे रस कहा जाता है।
अत: काव्य शास्त्र से मिलने वाले आनंद को ब्रह्मानंद सहोदर की उपमा भी दी गई है अर्थात इसे ब्रह्मानंद सहोदर भी कहा गया है। रस काव्य का मुख्य तत्व होता है।
भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र नामक ग्रंथ में रस की निम्नलिखित परिभाषा दी है-
विभावानुभाव व्यभिचारी संयोगाद्रस निष्पत्ति:।
उपरोक्त का भाव यह है कि विभाव अनुभाव और व्यभिचारी भावों की संयोग से ही रस की निष्पत्ति होती है।
हिंदी भाषा में रस के अवयवों का वर्णन :–
रस के चार अवयव या अंग होते हैं-
1.- स्थायी भाव
2.- विभाव
3.- अनुभाव
4.- संचारी भाव
रस के अवयव
1.- स्थायी भाव:– हमारे हृदय के अंदर जो भाव स्थाई रूप से विद्यमान तो रहते हैं लेकिन वे अनुकूल कारण पाकर ही उद्बुद्ध होते हैं, वे स्थायी भाव कहलाते है। इनकी संख्या नौ है-
(1).रति
(2).उत्साह
(3)क्रोध
(4).जुगुप्सा
(5).विस्मय
(6).निर्वेद
(7).हास
(8).भय
(9).शोक
रस और उनके स्थायी भाव:–
रस स्थायी भाव
श्रृंगार रति
वीर उत्साह
रोद्र क्रोध
वीभत्स जुगुप्सा
अद्भुत विस्मय
शांत निर्वेद
हास्य हास
भयानक भय
करुण शोक
इन रसों के अतिरिक्त काव्य में अन्य दो रस और भी माने गए हैं।
1.- वात्सल्य
2.- भक्ति
1.- वात्सल्य:– संतान विषयक रति
2.- भक्ति:– भगवद् विषयक रति
रस के अवयव:-
काव्य शास्त्र में रति के तीन भेद माने गए हैं-
(i).वात्सल्य रति
(ii).दांपत्य रति,
(iii).भक्ति संबंधी रति।
काव्य शास्त्र के इन तीनों से ही रस की उत्पत्ति होती है।
हिंदी काव्य शास्त्र में श्रृंगार रस को रसराज यानी सभी रसों का राजा माना गया है।
2.- विभाव
विभाव का अर्थ होता है ‘कारण’।
जिन कारणों के द्वारा सहृदय के हृदय में स्थित स्थाई भाव उत्पन्न होते हैं, वे विभाव कहलाते हैं।
विभाव के दो प्रकार होते हैं-
(i). आलंबन विभाव
(ii). उद्दीपन विभाव
(i). आलंबन विभाव:- हिंदी काव्य में जिस कारण से आश्रय के हृदय में स्थाई भावों का जागृत होना पाया जाता हैं उन्हें आलंबन विभाव के नाम से जाना जाता हैं।
इस सम्बन्ध में एक उदाहरण देखते है कि जब दुष्यंत के हृदय में शकुंतला को देखकर ‘रति’ नामक स्थाई भाव जागृत होता है, तो यहां दुष्यंत ‘आश्रय’ है, जबकि शकुंतला ‘आलंबन’ है।
(ii). उद्दीपन विभाव:- हिंदी काव्य शास्त्र में ये विभाव आलंबन विभाव के सहायक के रूप में होते हैं अर्थात अनुवर्ती होते हैं।
उद्दीपन में आलंबन की चेष्टाएं तथा बाह्य वातावरण ये दो तत्व सम्मिलित होते हैं । उद्दीपन विभाव, स्थायी भाव को और भी अधिक उद्दीप्त तथा उत्तेजित कर देता हैं।
रस के अंग
इसमें एक उदाहरण के तौर पर शकुंतला की चेष्टाएं दुष्यंत के रति भाव को उद्दीप्त करेंगी तथा उपवन, चांदनी रात, नदी का एकांत किनारा भी इस भाव को उद्दीप्त करेगा। अतः यह दोनों ही उद्दीपन विभाव है।
रस के अवयव:-
3.- अनुभाव
हिंदी काव्य में ‘आश्रय की चेष्टाएं’ अनुभाव के अंतर्गत आती हैं, जबकि ‘आलंबन की चेष्टाएं’ उद्दीपन के अंतर्गत आती है।
‘अनुभावो भाव बोधक:’
इसका यह अर्थ है कि भाव का बोध कराने वाले कारणों को ही अनुभाव कहा जाता हैं।
अनुभाव चार प्रकार के होते हैं:-
(i). कायिक
(ii). वाचिक
(iii). आहार्य
(iv). सात्विक
(i).कायिक:- शरीर अर्थात काया की चेष्टाओं से प्रकट होते हैं।
(ii).वाचिक:- ये अनुभाव वाणी से प्रकट होते हैं।
(iii).आहार्य:- ये अनुभाव वेशभूषा एवं अलंकारों अर्थात आभूषणों से प्रकट होते हैं।
(iv).सात्विक:- ये अनुभाव सत्व योग से उत्पन्न होते हैं| यह वे चेष्टाएं होती हैं जो हमारे वश में नहीं होती हैं अर्थात जिन्हें हम अपने वश में नहीं कर सकते हैं, वे सात्विक अनुभाव कहलाती हैं।
काव्य शास्त्र में इनकी संख्या आठ मानी गई है-
(i). स्वेद
(ii). कम्प
(iii). रोमांच
(iv). स्तंभ
(v). स्भंवरभंग
(vi). अश्रु
(vii). वैवर्ण्य
(viii). प्रलय
रस के अवयव:-
4.- संचारी भाव:– काव्य शास्त्र में स्थायी भाव की पुष्टि करने वाले भाव को संचारी भाव कहते हैं। इन भावों को व्यभिचारी भाव के नाम से भी जाना जाता है। इनकी संख्या 33 है, जो इस प्रकार है-
1. निर्वेद 10. ग्लानि 18. असूया 26. मद
2. शंका 11. श्रम 19. आलस्य 27. दैन्य
3. मोह 12. चिंता 20. स्मृति 28. चपलता
4. धृति 13. ब्रीड़ा 21. जड़ता 29. गर्व
5.हर्ष 14. विषाद 22. आवेग 30. औत्सुक्य
6.निद्रा 15. स्वप्न 23. अपस्मार 31. विवोध
7.अवमर्ष 16. अवहित्था 24. उग्रता 32. व्याधि
8.मति 17. त्रास 25. उन्माद 33. मरण
9.वितर्क