मेडिसिन नोबेल पुरस्कार 2021
मेडिसिन नोबेल पुरस्कार 2021:- आज की इस पोस्ट के माध्यम से हम आप के साथ मेडिसिन नोबेल
पुरस्कार 2021के बारे में चर्चा करेंगे| ये पुरस्कार किन व्यक्तिओं को दिया गया है तथा ये किस देश के
रहने वाले हैं, इन सब के बारे में विस्तार से पढेंगे?
इससे पहले की पोस्ट में हम आप को “सुनामी के प्रकार तथा कारण “ के बारे में विस्तार से बता चुके हैं|
किसे दिया गया 2021 का मेडिसन का नोबेल पुरस्कार?
मेडिसिन के क्षेत्र के 2021 का नोबेल पुरस्कार इस बार अमेरिका के डेविड जूलियस और लेबनान के
अर्देम पटापाउटियन को सयुंक्त रूप से दिया गया|
नोबेल पुरस्कार में क्या दिया जाता है?
सबसे प्रतिष्ठित इस नोबेल पुरस्कार में एक गोल्ड मेडल दिया जाता है| इसके साथ ही एक करोड़ स्वीडिश
क्रोनर की धन राशी नकद प्रदान की जाती है| इस राशी का आकलन भारतीय करेंसी के अनुसार 8.50
करोड़ रुपये मूल्य का होता है|
मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार 2021:-
स्वीडिश आविष्कारक अल्फ्रेड नोबेल द्वारा छोड़ी गई वसीयत से पुरस्कार की यह राशि आती है और इनके
नाम से ही इस पुरस्कार की शुरुआत की गई थी| सन 1895 में अल्फ्रेड नोबेल की मृत्यु हो गई थी
यह नोबेल पुरस्कार इन दोनों वैज्ञानिकों को फिजियोलॉजी अर्थात मेडिसिन में संयुक्त रूप से प्रदान किया गया है|
दोनों वैज्ञानिकों को यह पुरस्कार स्पर्श तथा तापमान के लिए रिसेप्टर्स की खोज करने पर दिया गया है|
दोनों की खोज ने स्पर्श के एहसास और गर्मी-सर्दी की समझ के पीछे के रहस्य को दुनिया के सामने लाकर रख दिया है|
Medicine Nobel Prize of 2021
हमारी त्वचा पर मौजूद नसों पर तापमान या दबाव का अलग-अलग असर होता है| वैज्ञानिकों के सामने
यह एक पहेली थी कि आखिर तापमान,गर्माहट या ठंडक को हमारी त्वचा के द्वारा कैसे पहचाना जाता है
तथा नर्वस सिस्टम के उस हिस्से के एहसास को कैसे पहुंचाया जाता है|
जुलियस ने मिर्च के एक एक्टिव कंटेंट कैप्सेसिन की मदद से त्वचा के ऐसे नर्व सेन्सर्स की पहचान की जो
गर्मी लगने पर त्वचा में प्रतिक्रिया का कारण बनते हैं| जैसे ही कुछ बहुत गर्म चीज हमारे करीब आती है तो
बिना देखे ही इन नर्व सेन्सर्स के कारण हम खुद को उससे दूर कर लेते हैं|
करोलिंस्का संस्थान में जो कि स्टॉकहोम में स्थित है, सोमवार को एक पैनल के द्वारा इन पुरस्कारों की घोषणा की गई थी|
Nobel Prize Of Medicine 2021:-
डेविड जूलियस कौन हैं?
एक अमेरिकी वैज्ञानिक हैं डेविड जूलियस| इनका जन्म सन 1955 में
अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में हुआ था| कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले से वर्ष 1984 में इन्होंने
पीएचडी की डिग्री प्राप्त की थी| डेविड जूलियस इस समय यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में जो कि सैन
फ्रांसिस्को में स्थित है, प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं|
अर्देम पटापाउटियन कौन हैं?
ये भी अमेरिका में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं| अर्देम पटापाउटियन मूल रूप से लेबनान
के रहने वाले हैं| लेबनान के बेरूत में वर्ष 1967 में उनका जन्म हुआ था| लेबनान के हालात युद्ध के कारण
सामान्य नहीं थे अत: ये बाद में बेरूत से अमेरिका में लॉस एंजिलिस में स्थानांतरित हो गए|
उन्होंने कैलिफोर्निया इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी, पेसाडेना से वर्ष 1996 में पीएचडी की डिग्री हासिल की|
वर्ष 2000 से अर्देम पटापाउटियन स्क्रिप्स रिसर्च ला जोला कैलिफोर्निया में ही कार्यरत हैं|
चिकित्सा के लिए नोबेल पुरस्कार 2021
आयन की पहचान करने के लिए पटापाउटियन ने संवर्धित यंत्र संवेदी कोशिकाओं का प्रयोग किया| डेविड
जूलियस और अर्देम पटापाउटियन ने यह खोज निकाला कि तंत्रिका तंत्र पर स्पर्श, गर्मी और ठंड का क्या
असर होता है तथा उसकी क्या प्रतिक्रिया होती है|
इन दोनो वैज्ञानिकों ने तापमान और स्पर्श के लिए रिसेप्टर्स की खोज करने पर मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार
जीता है| नोबेल पुरस्कार विजेताओं की मूलभूत खोज ने हमे यह बताने में मदद की है कि कैसे हमारे तंत्रिका
तंत्र में गर्मी, ठंड और स्पर्श संकेतों को शुरू कर सकते हैं| जिन आयनों की इन्होने पहचान की है ये कई रोग
निवारण तथा शारीरिक प्रतिक्रियाओं के लिए बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण हैं|
यह खोज किसी चीज से इंटरैक्ट करने, किसी चीज को पहचानने तथा हमारे महसूस करने की क्षमता के लिए
बेहद अहम है| इस खोज की मदद से उम्मीद है कि स्पर्श करने और महसूस करने की क्षमता तथा इससे जुड़े
सवालों का तथा बीमारियों का तोड़ निकाल लिया जायेगा|
तीन वैज्ञानिकों को मिला था पिछले साल यह पुरस्कार
तीन वैज्ञानिकों को संयुक्त रूप से वर्ष 2020 का मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था|
अमेरिका के दो वैज्ञानिक हार्वे जे ऑल्टर और माइकल
हॉफटन पुरस्कार पाने वालों में शामिल थे| चार्ल्स एम राइस एक ब्रिटिश वैज्ञानिक भी इनमे शामिल था|
हेपेटाइटिस सी वायरस की खोज के लिए तीनों को यह सम्मान संयुक्त रूप से दिया गया था|
हेपेटाइटिस सी वायरस लिवर को नष्ट कर देता है| इस कारण से जान जाने का खतरा बहुत अधिक बढ जाता है|
वायरस की खोज से इस जानलेवा बीमारी का इलाज करना बहुत ही आसान हो गया है|