भूकंप व इसके प्रकार
भूकंप व इसके प्रकार:- आज hindigkpdf के माध्यम से हम आपको भूकंप व इसके प्रकार के बारे में बतायेंगे| भूकंप किसे कहते हैं, यह कितने प्रकार के होते हैं, इन सब के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे| इससे पहले की पोस्ट में हम आपको “भारत के प्रमुख दर्रे” के बारे में विस्तार से बता चुके हैं|
अर्थ एवं परिभाषा:-
धरातल की सतह के अचानक हिलने तथा जोर के झटके महशुस होने को भूकंप कहते हैं। भूकम्प या भूचाल पृथ्वी के स्थलमण्डल जिसको लिथोस्फ़ीयर की परत कहते हैं, में एनर्जी में अचानक विस्फोट हो जाने के कारण होता है| इस विस्फोट के कारण पृथ्वी के भीतर भूकम्पीय तरंगें उत्पन्न हो जाती है।
यह बहुत भयानक स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं और कुछ ही पलों में हजारों लोगों को अपनी चपेट में लेकर चोट पहुँचाने से लेकर मौत के घाट उतार सकते हैं| भूकंप के अंदर पूरे नगर को ध्वस्त कर बड़ी मात्रा में तबाही मचाने की क्षमता होती है।
भूकंप एक ऐसी विचित्र घटना होती है जो बिना किसी पूर्व आभास के घटित होती है| इस के आने से पृथ्वी का बड़े जोर से हिलना शुरू हो जाता है| इसमें पृथ्वी तथा इसके ऊपर मौजूद संरचनाओं का बड़ी बुरी तरह से हिलना शामिल होता है।
ऐसा स्थल-मण्डल जिसको लिथोस्फेरिक परत भी कहते हैं उसमे भूमिगत प्लेटों में दबाव पड़ने से हुई उर्जा के मुक्त होने के कारण होता है। हमारी पृथ्वी की परत लगभग 7 बड़ी प्लेटों में बटी हुई है| ये प्लेटें पृथ्वी के अंदर 50 मील की मोटाई तक फैली हुई है| ये प्लेटें पृथ्वी के अंदर अनेक छोटी प्लेटों के ऊपर धीमी गति से लगातार गति करती रहती हैं।
भूकंप व इसके प्रकार
भूकंप मुख्य रूप से विवर्तनकारी अर्थात टेक्टोनिक होते हैं| इसका तात्पर्य यह है कि जमीन के अंदर आने वाले झटकों के लिए ये गति करती हुई प्लेटें ही जिम्मेदार होती हैं। किसी रिहायशी वाले क्षेत्र में एक भूकंप की घटना से हजारों की संख्या में लोग चोट लगने के कारण घायल हो सकते हैं इसके साथ-साथ संपत्ति को भी बड़ी मात्रा में नुकसान पहुंच सकता है।
भारत में भूकंप का जोखिम:-
भारत में बढ़ती हुई जनसंख्या तथा इसके उपर बड़े पैमाने से लगातार हो रहे अवैज्ञानिक निर्माण के कारण जिसमें बड़ी-बड़ी बहु-मंजिला आरामदायक इमारते , बड़े-बड़े उद्योगों की बिल्डिंगें, विशालकाय शोपिंग काम्प्लेक्स , सुपर बाज़ार तथा बड़े-बड़े मालगोदाम और इन सबके इलावा ईंट-पत्थर से बनी इमारतें शामिल हैं जो भूकंप की सम्भावना को उच्च जोखिम में रखते हैं।
भूकंप के प्रभाव:-
देश ने पिछले सालों में बहुत सारे बड़े भूकंपों का सामना किया है जिनके कारण हजारों की संख्या में जानें गई हैं। देश के वर्तमान भूकंपीय क्षेत्र में भारत की भूमि का 58 प्रतिशत से भी अधिक हिस्सा सामान्य तौर से भी अधिक गंभीर भूकंप के खतरों की चेतावनी में आता है| इसका अर्थ यह है कि भारत रिक्टर सकेल 7 या फिर इससे भी अधिक तीव्रता वाले झटकों के लिए हमेशा प्रवृति में रहता है|
संपूर्ण हिमालय क्षेत्र को वास्तव में 8 की तीव्रता वाले बड़े-बड़े भूकंपों के लिए हमेशा प्रवृति माना जाता है| अपेक्षाकृत पीछले 48 से 50 साल के दौरान भारत में 4 ऐसे बड़े भूकंप आ चुके हैं| भारत के वैज्ञानिकों ने अपने कई लेखों में हिमालय के क्षेत्र में एक बड़े विशाल और शक्तिशाली भूकप के आने की संभावना की चेतावनी दी हुई है| इससे भारत में रहने वाले करोड़ों लोगों की जिंदगी पर विपरीत असर पड़ सकता है।
Earthquake and Its Kind
पहले समय में हिमालय से दूर-दराज में स्थित देश के हिस्से विनाशकारी भूकंपों से लगभग सुरक्षित माने जाते थे। लेकिन इसके बावजूद बीते हाल के समय में इन हिस्सों में भी विनाशकारी भूकंप आते रहे हैं| फिर भी कुल मिलाकर हिमालय क्षेत्र में आए भूकंपों के मुकाबले में इनकी शक्ति काफी कम थी।
कोयना में आने वाले भूकंप के कारण मानचित्रवाली में भूकंपीय जोन सम्बन्धी संशोधन करना पड़ा इस कारण से मानचित्र में से गैर-भूकंपीय क्षेत्र को हटाना पड़ा था। कोयना के आसपास के क्षेत्रों को भी भूकंपीय क्षेत्र में स्थान दे दिया गया है जो कि अब उच्च जोखिम के क्षेत्र को दर्शाता है।
किल्लारी क्षेत्र में भूकंप के आने से मानचित्र के भूकंपीय क्षेत्र में और संशोधन करना पड़ा जिससे कम खतरे वाले भूकंपीय क्षेत्र को अधिक खतरे वाले भूकंपीय क्षेत्र में तब्दील कर दिया गया| दक्षिण तथा प्रायद्वीपीय भारत के कुछ भागों को भी भूकंप के कम खतरे वाले क्षेत्र के अंतर्गत लाया गया| अत: इसमें सामान्य खतरे वाले क्षेत्रों के इलाके में दिखाए गए क्षेत्र शामिल हैं।
हाल के अनुसंधान में यह सुझाव दिए गए हैं कि जैसे-जैसे इन इलाकों के भूकंपीय खतरों के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त होगी तो कम खतरे वाले क्षेत्रों में रखे गए कुछ और इलाकों को उच्च भूकंपीय खतरा क्षेत्रों के रूप में दिखाया जा सकता है।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह इंटर-प्लेट बाउंड्री वाले क्षेत्रो पर स्थित है अत: इनमें भी बार-बार विनाशकारी भूकंप आते रहते हैं।
भूकंप और इसके प्रकार
3 या उस से कम रिक्टर परिमाण की तीव्रता वाला भूकंप अक्सर कम प्रभाव वाला होता है| 7 रिक्टर
परिमाण की तीव्रता का भूकंप बड़े क्षेत्रों में भयानक क्षति का कारण बन सकता है।
समुद्र के किनारे पर भूकंप बहुत अधिक मात्रा में जल-विस्थापन का कारण बन सकता है जो कि सूनामी
आने का कारण बन सकता है। इसके झटके कभी-कभी भूस्खलन और ज्वालामुखी
गतिविधियों को भी पैदा कर सकते हैं|
भूकंप के कारण:-
बढ़ते हुए शहरीकरण के कारण भूकंपों के जोखिम में वृद्धि हुई है| बढ़ते आर्थिक विकास तथा भारत की अर्थव्यवस्था के वैश्विकीकरण के कारण हुए विकासात्मक कार्यकलापों से भी भूकम्पों में तीव्र बढ़ोतरी हुई है। सेवा उद्योगों और विनिर्माण में प्रयोग किये जाने वाले उच्च प्रोद्यौगिकी वाले उपकर्णों तथा औजारों के उपयोग में हुई वृद्धि ने भी पृथ्वी पर आने वाले हल्के झटकों में वृद्धि कर दी है|
इस के परिणामस्वरूप, भूकंप का बुरा नतीजा, मनुश्य के जीवन की हानि अब और अधिक बढ़ रही है।
भूकंप के बाद स्थानीय अथवा व्यापक आर्थिक अर्थव्यवस्था तहस-नहस करने वाले गंभीर परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं|
आर्थिक नुकसान से संपूर्ण देश के लिए दीर्घलीन प्रतिकूल नतीजे हो सकते हैं।
दिल्ली अथवा मुंबई जैसे महानगर को यदि कोई भूकंप प्रभावित करता है तो इसका प्रतिकूल असर और
भी अधिक बड़े पैमाने पर होगा।
जहां से भूकंप उत्पन्न होता है वह प्रारंभिक बिन्दु, उपरी केन्द्र या हाईपर सेंटर कहलाता है। उपरिकेंद्र शब्द
का अर्थ है कि ठीक धरती के ऊपर के स्तर पर बिन्दु।
सभी टेक्टोनिक प्लेट्स अपनी पड़ोसी प्लेटों के साथ अंतर्क्रिया करती है जिस कारण से आंतरिक दबाव क्षेत्र उत्पन्न
होते हैं| अतः यह प्लेट भूकंप को जन्म देती हैं।
Bhukamp Ke Kaaran
अधिकतर पलेटों के खिसकने से उत्पन्न भूकंप 10 किलोमीटर से अधिक की गहराई वाले नहीं होते हैं। 70 किलोमीटर से कम की गहराई वाले भूकंप कम तीव्रता के भूकंप कहलाते हैं| 70 से 300 किलोमीटर के बीच की गहराई से उत्पन्न होने वाले भूकंप बीच की तीव्रता वाले या अन्तर मध्य-केन्द्रीय वाले भूकंप कहलाते हैं।
जहाँ पर पुरानी और ठंडी समुद्री परत अन्य टेक्टोनिक प्लेट के नीचे खिसक जाती है वहां पर गहरे केंद्रित भूकंप अर्थात अधिक गहराई पर 300 से लेकर 700 किलोमीटर तक आ सकते हैं। ये क्षेत्र सीस्मिक रूप से सक्रीय क्षेत्र कहलाते हैं। उच्च तापमान और दबाव के कारण गहरे केन्द्र के भूकंप उस गहराई पर उत्पन्न होते हैं| यह गहरे केन्द्र के भूकंप के उत्पन्न होने की एक संभावित क्रियाविधि है|
ज्वालामुखी और भूकंप:-
अक्सर भूकंप ज्वालामुखी वाले क्षेत्रों में भी उत्पन्न होते हैं| यहाँ इनके मुख्य रूप से दो कारण होते हैं 1- टेक्टोनिक दोष तथा 2- ज्वालामुखी में लावा की गतियां|
इस तरह के भूकंप ज्वालामुखी विस्फोट की पूर्व चेतावनी होती है।
भूकंप का मापन:-
सीस्मोग्राफ के द्वारा भूकंप का मापन किया जाता है जिसे भूकम्पमापी यंत्र कहा जाता है| एक भूकंप का प्रभाव
या परिणाम रिक्टर सकेल के रूप में नापा जाता है|
मरकैली सकेल पर झटकों की तीव्रता का मापन विकसित पैमाने पर किया जाता है।
किसी भूकंप के आने के बाद सावधानियां
1 शांति का माहोल बनाये रखे|
2 टेलिविजन या रेडियो को चालू कर के रखें तथा इस पर आने वाली हिदायतों का पालन करें।
3 मछली पकड़ने के लिये नदी या समुद्र-तट के निचले किनारों में ना जाए|
4 बिजली-पानी तथा गैस आदि के स्विचों को बंद कर दें।
5 भूकंप के बाद में आने वाले झटकों के प्रति सजग रहें।
6 सिगरेट, लाइटर तथा माचिस की तीली को न जलाएं|
7 बिजली के स्विच को ऑन न करें क्योंकि इससे शार्ट सर्किट हो सकता है।
8 धूम्रपान अर्थात बीड़ी-सिगरेट ना पीयें|
9 आग लगने पर इसे तुरंत बुझाने का प्रयास करें या फायर ब्रिगेट को बुलाएं।
10 लोगों को गंभीर चोट लगने पर उन्हें तब तक न हिलाएं जब तक उन्हें अधिक खतरा ना हो|
11 ज्वलनशील पदार्थ पेट्रोल, डीजल,अल्कोहल, पेंट जो जमीन पर बिखर गया हो,को तुरंत साफ कर दें।
12 हड़बड़ी न मचाएं चोटग्रस्त लोगों की सहायता करें, हालत अधिक खराब होने पर बचाव टीमों को बुलाएं
13 बिजली की तारों से दूर रहें तथा ऐसे स्थान से बचें|
14 बेहद क्षतिग्रस्त घर को तुरंत छोड़ दें तथा गंभीर बीमारी की दवाईयों को इकठ्ठा कर लें|
आपातकालीन किट का सामान:-
1 टॉर्च (बैटरी चालित) तथा अतिरिक्त बैटरियां
2 रेडियो (बैटरी चालित)
3 फर्स्ट एड बोक्स
4 पीने का पैक्ड पानी तथा खाद्य सामग्री
5 इमरजेंसी के लिये मोमबत्ती तथा माचिस
6 चाकू
7 क्लोरीन की गोलियां
8 ओपनर
9 अति आवश्यक दवाइयां
10 जूते
11 रस्सी तथा डोरियां
12 नकद धन राशी, तथा अन्य बेहद जरूरी कागजात