भारत की वन सम्पदा
भारत की वन सम्पदा:- आज इस पोस्ट के माध्यम से हम आपसे भारत की वन सम्पदा विषय के
बारे में चर्चा करेंगे| वन सम्पदा से क्या अभिप्राय हैं, यह किन-किन स्थानों पर पाई जाती हैं तथा
ये कितने प्रकार की होती हैं, इन सब के बारे में विस्तार से पढेंगे?
इससे पहले की पोस्ट के माध्यम से हम आप को “ पृथ्वी का वायुमंडल ” के बारे में विस्तार से बता चुके हैं।
वन सम्पदा का परिचय:-
वन एक अति मूल्यवान संसाधन है जो हमे भोजन तथा आश्रय प्रदान करता है| वन वन्यजीवन को
आवास प्रदान करते हैं तथा हमे दैनिक जरूरी सामान की आपूर्ति जैसे ईंधन,औषधीय सामग्री तथा
कागज प्रदान करते हैं| वन पृथ्वी के वातावरण में CO2 की आपूर्ति और विनिमय का संतुलन बनाये
रखने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं|
भारत में वनों का क्षेत्रफल:-
समस्त भू-भाग का एक तिहाई भाग, स्वस्थ पर्यावरण एवं पारिस्थितिक संतुलन बनाये रखने के लिए
वनों से ढका रहना चाहिए । भारत में वनों का क्षेत्रफल लगभग 748 लाख हेक्टेयर है जो कि देश के
कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 27.7 प्रतिशत है ।
भारत के राज्यों में सबसे अधिक वन वाला राज्य अरूणाचल प्रदेश है जिसमे 87 प्रतिशत कुल भू-भाग
पर वन है । यह राजस्थान राज्य में 4 प्रतिशत है| बिहार राज्य में 17 प्रतिशत है तथा हरियाणा एवं पंजाब
राज्यों में मात्र 2 प्रतिशत क्षेत्र पर ही वन हैं ।
भारत के अंदर 93% भाग पर उष्ण कटिबंधीय वन तथा शेष 7% शीतोष्ण वन हैं । 50 प्रतिशत उष्ण कटिबंधीय
वनों में पर्णपाती अर्थात् पतझड़ वन हैं। वनों का उत्पाद भारत में प्रतिवर्ष मात्र प्रति हेक्टेयर 0.5 घन मीटर है|
वनों का विश्व में औसत उत्पादन 2.1 घन मीटर प्रति हेक्टेयर है|
हमारी वन सम्पदा
म्यांमार में यह कुल भू-भाग के 68 प्रतिशत क्षेत्रफल पर वन है| जापान में 62 प्रतिशत है| स्वीडन में यह 55.5
प्रतिशत है तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में कुल भू-भाग का 33 प्रतिशत वन है|
भारत में वनों का वर्गीकरण:-
भारत एक मानसूनी जलवायु वाला देश है। यहाँ वनों में व्यापक रूप से विषमता पाई जाती है| मानसूनी जलवायु
वाला देश होने के बावजूद यहाँ अनेक प्रकार की प्राकृतिक वनस्पतियाँ पायी जाती हैं । भारत में निम्न कारणों से
वनों की विषमता पाई जाती है- 1. भारत का अत्यधिक तटीय फैलाव 2. उच्चावच की स्थिति 3. अक्षांशीय विस्तार
4. वर्षा के वितरण की विषमता 5. पर्वतों की विविधता तथा 6. अनेक प्रकार की वनस्पतियां होने के कारण यहाँ
वनों में व्यापक रूप से विषमता पाई जाती है ।
वनों का वर्गीकरण:-
भारत के वनों को मुख्यतः छः भागों में वर्गीकृत किया गया है:-
1.- उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन
2.- उष्ण कटिबन्धीय आर्द्रपर्णपाती वन
3.- उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन
4.- कँटीले वन
5. – पर्वतीय वन
6. – ज्वारीय वन
1.– उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन:-
ये वन अत्यधिक आर्द्र एवं उष्ण भागों में मिलते हैं| भारत के इन क्षेत्रों में औसत वार्षिक वर्षा 200 से.मी. से अधिक
होती है| यहां का औसत तापमान 240 के आसपास रहता है तथा सापेक्ष आर्दता 70 प्रतिशत से अधिक रहती है।
अधिक वर्षा, अल्पकालीन शुष्क ऋतु और अपेक्षाकृत उच्च तापमान के कारण, ये वन बहुत अधिक सघन तथा ऊँचे
होते हैं । इन वनों में पेड़ों की ऊँचाई 60 मीटर से भी अधिक होती है । विभिन्न प्रकार के वृक्षों के पत्तों के गिरने का
समय यहां पर भिन्न-भिन्न होता है| इस कारण से संपूर्ण वन हमेशा हरा-भरा रहता है।
Bharat Ke Van Sansaadhn
उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वनों में अनेक जाति के वृक्ष पाये जाते हैं । इन वनों की तुलना विषुवतीय प्रदेष की वनस्पति
से की जाती है। लेकिन ये वन पूर्ण रूप से विषुवतीय वन नहीं है| इन वनों के अक्षांशीय विस्तार अलग-अलग होने के
साथ-साथ वहाँ संवहनीय वर्षा का भी अभाव पाया जाता है। कुछ महत्वपूर्ण वृक्ष जैसे- एबोनी, नारियल, बांस, बेंत,
रबड़, महोगनी तथा आइसवुड प्रमुख उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वनों में पाये जाने वाले वृक्ष हैं।
उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन मुख्यतः 4 क्षेत्रों में पाये जाते हैं:-
(i).- हिमालय का तराई क्षेत्र
(ii).- पष्चिमी घाट (मालावार प्रदेष)
(iii).- पूर्वोत्तर भारत (असम, मेघालय, नागालैण्ड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा)
(iv).- अण्डमान निकोबार द्वीप समूह
अत्यधिक सघन होने के कारण एवं लकड़ी के अधिक सख्त होने के कारण आर्थिक दृष्टि से ये वन बहुत अधिक
उपयोगी नहीं हैं। ये वन लगभग 46 लाख हेक्टेयर के क्षेत्रफल में फैले हुए है ।
हाल ही के वर्षों मे यहाँ पर वाणिज्यिक महत्व के पेड़ लगाए जाने पर काफी बल दिया जा रहा है| इनमें तेलताड़
के वृक्ष, रबड़ के वृक्ष तथा महोगनी के वृक्ष प्रमुख हैं ।
2.- उष्ण कटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन:-
उष्ण कटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वनों को उष्ण मानसूनी वन भी कहते हैं । ये वन जहाँ पर 100 से 200 से.मी. तक की
वार्षिक वर्षा होती है, देश के उन सभी भागों में पाए जाते हैं । इन वनों के मुख्य क्षेत्र हैं-1. सह्याद्रि या पष्चिमी घाट के
पूर्वी ढ़लान 2. प्रायद्वीपीय उत्तरी-पूर्वी पठार 3. उत्तर में शिवालिक श्रेणी तथा 4. तराई क्षेत्र हैं । यह विशेष मानसूनी
वन हैं । इन्हें पतझड़ वन भी कहते हैं क्योकि इन वनों के पेड़ ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ में अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं।
वन सम्पदा पर निबंध
इनका सर्वाधिक क्षेत्रफल मध्य प्रदेश में है| सागवान तथा उत्तरी क्षेत्र में पाये जाने वाले साल के वृक्ष इनके प्रमुख एवं
आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण वृक्ष है| इन वनों के पेड़ों की ऊँचाई सामान्यतः 30 से 45 मीटर होती है|
इन वनों के इलावा बाँस तथा चंदन के वृक्ष कर्नाटक में पाए जाते हैं| शीशम के वृक्ष उत्तरी भागों में पाए जाते हैं| इन
वनों में आम, महुआ, आँवला हर्रे और बहेड़े तथा कत्था के वृक्ष भी पाए जाते हैं जो कि आर्थिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण पेड़ हैं।
बाँस के वृक्षों का प्रयोग तथा सवई घास का उपयोग कागज़ बनाने में किया जाता है|
तेन्दु वृक्ष के पत्ते का उपयोग बीड़ी उद्योग में किया जाता है ।
इन वनों के कुछ और लाभ भी हैं जैसे-
1.- शहतूत के वृक्ष पर रेशम के कीड़े पाले जाते हैं जो कि कर्नाटक राज्य में सबसे अधिक होते हैं|
2.- बबूल,पीपल और पलाश के पेड़ों पर लाख के कीड़े पाले जाते हैं । विश्व में भारत लाख का
सबसे बड़ा उत्पादक करने वाला देश है ।
3.- कर्नाटक राज्य में चंदन के वृक्ष पाए जाते हैं जिस कारण से भारत के इन वनों को आर्थिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है ।
3.- उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन:-
उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ पर वार्षिक वर्षा 70 से.मी. से 100 से.मी. के बीच
में होती है । वर्षा की कमी और जलवायु की विषमता के कारण इनमें ऊँचे पेड़ों का अभाव है।
ये वन निम्न क्षेत्रों में पाए जाते हैं- i. उत्तर प्रदेष के अधिकतर भाग ii. पश्चिमी बिहार iii. उत्तरी तथा पश्चिमी मध्यप्रदेश
iv. महाराष्ट्र के अधिकतर भाग v. उत्तरी आंध्रप्रदेश vi. कर्नाटक के मध्यवर्ती क्षेत्र का उत्तरी-दक्षिण संकीर्ण भाग तथा
vii. तमिलनाडु के पूर्वी भाग सम्मिलित हैं ।
भारत के वन संसाधन
ये पर्णपाती वन,शुष्क सीमान्त क्षेत्र पर कँटीले वनों और झाडि़यों मे बदल जाते हैं । यह वन-क्षेत्र अत्यधिक चराई के कारण
चुनौती की समस्या पैदा करते हैं ।
4.- कँटीले वन:-
इन वनों में वार्षिक वर्षा 70 से.मी. से कम होती है। इनका क्षेत्र गुजरात राजस्थान और पंजाब के भागों में मिलता है|
जहाँ लम्बी तथा शुष्क ग्रीष्म ऋतु मिलती है, पठार के मध्यभाग में भी ये वन पाये जाते हैं ।
इन वनों के कुछ प्रमुख उपयोगी वृक्ष हैं- खैर, खजूरी, बबूल, तथा खेजरी हैं ।
अतिअल्प वर्षा वाले भागों में कैक्टस् और नागफनी प्रजातियां तथा मरुस्थलीय वनस्पति जैसे- जीरोफाइट्स पाये जाते हैं।
5.- पर्वतीय वन:-
भौगोलिक दृष्टि से इन्हें दो भागों में बांटा जाता है-
1.- उत्तरी या हिमालय वन
2.- दक्षिणी या प्रायद्वीपीय वन
1.- उत्तरी या हिमालय वन:-
इस प्रकार के वन प्रदेशों में ऊँचाई की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होती है । इस क्षेत्र में उष्ण
कटिबंधीय से लेकर अल्पाइन वनस्पति प्रदेशों तक का अनुक्रम पाया जाता है। ये वन विभिन्न
पेटियों में वर्गीकृत किये गए हैं जो 6 किलोमीटर तक की ऊँचाई में समाई हैं।
गिरिपाद शिवालिक की श्रेणियाँ उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वनों से भरी हुई हैं । यहाँ के
प्रमुख वृक्ष साल हैं। यहाँ बांस भी खूब मात्रा में होता है।
उत्तरी या हिमालययी वन को ओर आगे निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-
(i)जहां पर 100 मीटर से लेकर 200 मीटर तक की ऊँचाई पाई जाती हैं वहां पर आर्द्र
पर्वतीय वन पाए जाते हैं। यहाँ सामान्य रूप से सदाहरित चौड़ी पत्ती वाले ओक, चेस्टनट
तथा सेब के वृक्ष हैं । उत्तर-पूर्वी भागों में इसी ऊँचाई पर उपोष्ण कटिबंधीय चीड़ के वन हैं।
(ii) शीतोष्ण कटिबंधीय प्रसिद्ध शंकुधारी वन 1600 से 3300 मीटर तक की ऊँचाई के बीच पाए जाते हैं। इनमें चीड़, सिल्चर, फर और स्प्रूस वृक्ष पाए जाते हैं।
वन सम्पदा का महत्त्व
(iii) अल्पाइन वनों तथा चारागृह भूमियों का संक्रमण 3000 मीटर से अधिक ऊँचाई पर पाया जाता है। सिल्वर फर, चीड़, वर्च तथा जैनिफर इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं।
2.- दक्षिणी या प्रायद्वीपीय पहाडि़यों के वन:-
यहाँ अविकसित वर्षा-वन हैं तथा मुख्यतः घास के मैदान मिलते हैं। अन्नासलाई, पालनी, महाबलेष्वर, नीलगिरि, सह्याद्रि के उच्च भाग तथा सतपुड़ा आदि में मुख्यतः इस प्रकार की वनस्पति मिलती हैं।
6.- ज्वारीय वन:- इन्हें दलदली अथवा डेल्टाई वन भी कहा जाता है । ये वन भारत में उष्णकटिबंध के तटीय लैगून, डेल्टा, ज्वारीय दलदलों, तथा पष्च-जल झीलों के समीप मिलते है । ज्वारीय वन महानदी, गोदावरी तथा कृष्णा-कावेरी गंगा-ब्रह्मपुत्र, आदि के डेल्टाओं में पाए जाते हैं । इन वनों का प्रसिद्ध वृक्ष सुन्दरी नामक वृक्ष है । गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा के वन को इसी वृक्ष के नाम पर ही सुन्दरवन कहा जाता है।
ज्वारीय वन में सुन्दरवन के अलावा तमिलनाडु के तटवर्ती क्षेत्र में ताड़ के वन पाये जाते हैं| ज्वारीय वन में ही पष्चिमी तटवर्ती मैदान में पाया जाने वाला नारियल का वन भी सम्मिलित हैं । इनके अतिरिक्त नारियल के वन ब्राह्मणी और महानदी डेल्टा के बीच तथा कृष्णा और कावेरी डेल्टा के बीच भी सघन रूप से पाए जाते हैं । गुजरात के कच्छ क्षेत्र में भी ये वन पाए जाते हैं| इन वनों को कच्छ के वन या गरान की वनस्पती भी कहते हैं ।
ज्वारीय वनों का महत्त्व है:-
(1) यह वन समुद्री अपरदन से तटों की रक्षा करता है ।
(2) इन वनों की लकडि़यां जल में नहीं सड़ती अत: इनसे नांव बनाई जाती है।
(3) इन दलदली वनों में वन उत्पाद के साथ मत्स्ययन तथा धान की खेती भी होती है ।
(4) ज्वारीय वन वायुमंडलीय तल को नियंत्रित करता है तथा इस वनों की वनस्पतियों के संरक्षण के लिए सरकार के द्वारा कई योजनायें चलाई गई हैं|