बाढ़ का अर्थ कारण एवं प्रकार
बाढ़ का अर्थ कारण एवं प्रकार:- आज इस पोस्ट के माध्यम से हम आपसे बाढ़ का अर्थ कारण
एवं प्रकार के बारे में चर्चा करेंगे| बाढ़ से क्या अभिप्राय है, यह कितने प्रकार की होती है, इसके
आने के क्या कारण हैं तथा इससे बचाव के क्या उपाय है, इन सब के बारे में विस्तार से पढेंगे?
इससे पहले की पोस्ट में हम आप को “भारत की जलवायु” के बारे में विस्तार से बता चुके हैं|
बाढ़ से तात्पर्य:-
जब नदी का जल उफान के समय किनारों को तोड़ता हुआ बस्तियों में और इसके आस-पास की
ज़मीन पर पहुँच जाता है तो यह बाढ़ की स्थिति पैदा कर देता है। आमतौर पर बाढ़ अचानक नहीं
आती, यह वर्षा ऋतु में तथा कुछ विशेष क्षेत्रों ही आती है।
बाढ़ उस अवस्था में ही आती है जब नदी का जल, जल-वाहिकाओं में इनकी क्षमता से अधिक बढ़
जाता है तथा बाढ़ के रूप में मैदानी क्षेत्र के निचले हिस्सों में आ जाता है।
सभी प्राकृतिक आपदाओं में, भारत में घटित होने वाली सबसे अधिक घटनाएँ बाढ़ की ही हैं। इसका
मुख्य कारण वर्षा ऋतु के चार महीनों में भारी जलप्रवाह तथा भारतीय मानसून की अनिश्चित स्थिति
का होना है| भारत की असमान भूगोलिक विशेषताएँ, विभिन्न हिस्सों में बाढ़ की प्रकृति तथा तीव्रता
इसके निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
नादियों में बाढ़ के कारण समाज का आम जनजीवन तथा सबसे गरीब तबका सबसे अधिक प्रभावित
होता है। बाढ़ प्रकृति के साथ-साथ जान-माल को भी क्षति पहुँचाती है। अतः सतत् एवं व्यापक विकास
के लिये बाढ़ के आकलन की बहुत अधिक आवश्यकता है।
बाढ़ से अभिप्राय
आंतरिक जल क्षेत्रों और झीलों में भी कई बार इनकी क्षमता से बहुत अधिक जल भर जाता है। मानसून
के दौरान प्राकृतिक तथा मानव निर्मित कारण और लगातार भारी वर्षा हैं जो इसके लिये जिम्मेदार हैं।
प्राकृतिक आपदाओं बाढ़ में सबसे अधिक विश्वव्यापक है। यदि जल भराव की स्थिति ऐसे क्षेत्रों में होती है
जहां सामान्य से अधिक मात्रा में पानी रहता है तो उसे बाढ़ कहा जाता है।
सामान्यतया बाढ़ एक प्राकृतिक घटना है। लेकिन जब यह एक दुर्घटना के रूप में सामने आती है तो इसके
कारण तथा निवारण पर विचार करना अति आवश्यक हो जाता है।
ना केवल भारत बल्कि बाढ़ से सम्पूर्ण विश्व के देश प्राभवित रहते है। चाहे इसके कारण अलग-अलग ही क्यों
ना हो। बाढ़ एक मानव जन्य संकट भी है।
भारत में बाढ़ की स्थिति:-
बार-बार आने वाली बाढ़ के कारण भारत के विभिन्न राज्यों में जान-माल की भारी क्षति होती है। देश में
चार करोड़ हेक्टेयर भूमि को राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने बाढ़ ग्रसीत क्षेत्र घोषित किया हुआ है।
बिहार राज्य, असम राज्य और पश्चिम बंगाल सबसे अधिक बाढ़ ग्रसीत राज्यों में शामिल हैं। इन उपरोक्त राज्यों के अतिरिक्त उत्तर भारत की अधिकतर नदियाँ खास तौर से उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों में बाढ़ लाती रही हैं।
हरियाणा और पंजाब तथा राजस्थान और गुजरात के कई क्षेत्र आकस्मिक बाढ़ के कारण पिछले कुछ
दशकों से बाढ़ से प्रभावित होते रहे हैं। मानसूनी वर्षा की तीव्रता तथा मानव क्रिया कलापों द्वारा प्राकृतिक
जलप्रवाह तंत्र को अवरुद्ध करना इसका मुख्य कारण रहा है।
नवंबर से जनवरी मास के बीच लौटते मानसून से भी कई बार तमिलनाडु में बाढ़ तीव्र वर्षा द्वारा ही आती है।
बाढ़ के कारण व बचाव
बाढ़ के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
1.- वनस्पतियों का बड़ी मात्रा में विनाश
2.- वर्षा की अधिकता के कारण
3.- नदी की तलहटी में अत्यधिक मलबे का जमाव होना
4.- नदी की धारा प्रवाह में परिवर्तन होने के कारण
5.- तट बध और तटीय अधिवास
6.- नदियों के मार्ग में मानव निर्मित व्यवधानों के द्वारा
1.- वनस्पतियों का बड़ी मात्रा विनाश:- बाढ़ के प्रभाव को वनस्पतियां नियंत्रित करने में मददगार
होती है। इसीलिए वनस्पति विहीन धरातल वर्षा के जल को नियंत्रित करने में समर्थ नही होता है|
इसके परिणामस्वरूप तीव्र जल बहाव के कारण भूमिकटाव भी बहुत अधिक होता है।
विश्व के प्रायः सभी देशों में अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए काफी तीव्रगति से वनों का विनाश
हुआ है। यह बाढ़ का प्रसमुख कारण रहा है। हिमालयी क्षेत्रो में वनस्पतियों का जिस प्रकार से विनाश
हुआ है उत्तरी भाग में बाढ़ के प्रकोपों का सबसे बड़ा कारण यही है| क्योंकि हिमालय से ही देश की सभी
बड़ी नदियां निकली है।
2.- वर्षा की अधिकता के कारण:- जब भी कहीं लगातार और सामान्य से अधिक वर्षा हो जाती है तो
अचानक जल भराव के कारण बाढ़ आ जाती है। बिहार तथा राजस्थान आदि जैसे राज्य अधिक वर्षा के
कारण प्रायः हर वर्ष बाढ़ से प्रभावित होते रहते है।
3.-नदी की तलहटी में अत्यधिक मलबे का जमाव होना:- प्राकृतिक या मानवीय कारण से जब किसी
भी नदी की तली में मलबे आदि का अधिक भराव हो जाता है तो नदी की गहराई काम हो जाती है। इस
कारण से थोड़ी सी भी वर्षा होने से नदी का जल ओवर फ्लो हो जाता है और बाढ़ आ जाती है।
बाढ़ का कारण व बचाव के उपाय
4.- नदी की धारा प्रवाह में परिवर्तन होने के कारण:- बहुत अधिक वर्षा के कारण नदियां जल से
पूर्ण रूप से भर जाती है तथा अपने पूरे वेग से चलना शुरू कर देती है| इनसे इनके धारा प्रवाह में परिवर्तन
हो जाता है| ये अपना रास्ता बदल कर रिहायशी इलाकों की तरफ बहना शुरू कर देती है|
5.- तट बध और तटीय अधिवास:- मानसून के समय में तेज बारिस के कारण तालाब तथा नदियां अपने
तटों को पार करके बहना आरम्भ कर देती है जिससे तट्टीय इलाकों के बाढ़ की स्तिथि उत्पन्न हो जाती है|
6.- नदियों के मार्ग में मानव निर्मित व्यवधानों के द्वारा:- कई बार नदियों के मार्ग में मानव द्वारा निर्मित
जैसे किसी पुल या किसी बाँध के निर्माण से व्यवधान उत्पन्न हो जाते है जिस कारण से बाढ़ की स्थिति पैदा
हो जाती है|
उपरोक्त के इलावा बाढ़ के अन्य कारण भी हो सकते हैं जिनका वर्णन निम्न प्रकार से है-
(i).- मौसम संबंधी तत्त्व:- तीन से चार माह की अवधि में ही दरअसल देश में भारी बारिश के कारण
नदियों में जल का प्रवाह बढ़ जाता है| यह विनाशकारी बाढ़ का कारण बनता है। एक दिन में पन्द्रह
सेंटीमीटर से भी अधिक वर्षा होने के कारण नदियों का जलस्तर खतरनाक तरीके से बढ़ना
शुरू कर देता है।
(ii).- बादल फटना:- पहाड़ियों या नदियों के आस-पास भारी वर्षा के कारण और बादलों के फटने
से भी नदियों का जलस्तर बढ़ जाता हैं।
(iii).- वनों की कटाई:- पहाड़ी क्षेत्रों में लगातार पेड़ो की कटाई के कारण भी बाढ़ का खतरा बढ़ गया है|
क्यों कि बहुत घने पेड़ पानी के तेज बहाव को रोकने में मदद करते हैं|
बाढ़ के भयावह परिणाम
बाढ़ से ग्रस्त क्षेत्रों में कई प्रकार की बीमारियाँ फ़ैल जाती है| इन में मुख्य रूप से हेपेटाईटिस, हैजा,
आंत्रशोथ एवं अन्य दूषित जल से होने वाली अन्य बीमारियाँ फैल जाती हैं।
बिहार, असम, तमिलनाडु और गुजरात के तटीय क्षेत्र तथा पंजाब एवं हरियाणा आदि राज्यों में बार-बार
बाढ़ आने से और मानव बस्तियों तथा कृषि भूमि के डूबने से देश की अर्थव्यवस्था तथा समाज पर गहरा
प्रभाव पड़ता है।
बाढ़ नियंत्रण के उपाय:-
बाढ़ की त्रासदी से बचने के लिए अनेक उपाय किये जा सकते है जिनमें तटबंधों के निर्माण द्वारा जल
निकासी का प्रबंध करके, ढलवां भूमि पर अधिक से अधिक वृक्षारोपण करके, जलाशयों का निर्माण
करना आदि शामिल है।
जल संबंधी आपदाओं को रोकने के लिये हर संभव प्रयास किया जाना चाहिये| बाढ़ से निपटने के लिये
तंत्र सहित पूर्व तैयारी जैसे विकल्पों पर ज़ोर दिया जाना चाहिये। प्राकृतिक जल निकास प्रणाली पर भी
अत्यधिक ज़ोर दिये जाने की आवश्यकता है।
भूमि कटाव जैसे स्थायी नुकसान को रोकने के लिये तटबंधों इत्यादि का निर्माण किया जाना चाहिए|
अत्यधिक तीव्र वर्षा होने तथा मृदा कटाव की संभावना बढ़ने से यह और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।
बाढ़ का सामना करने के लिये बाढ़ पूर्वानुमान अति महत्त्वपूर्ण है तथा इसका देश भर में सघन विस्तार
किया जाना चाहिये|
जलाशयों के जल संग्रहन की क्षमता को बढ़ाना चाहिए ताकि बारिश के मौसम के दौरान बाढ़ को सहन
करने संबंधी क्षमता प्राप्त हो सके|
प्रत्येक राज्य स्तर पर बाढ़ नियंत्रण बोर्ड की स्थापना की जानी चाहिए तथा प्रशिक्षण संस्थान स्थापित
किये जाने चाहिए जिससे लोगों को बाढ़ के समय किये जाने वाले उपायों के बारे में प्रशिक्षण प्रदान
किया जा सके।