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नासा का लूसी मिशन

नासा का लूसी मिशन
Written by Rakesh Kumar

नासा का लूसी मिशन

नासा का लूसी मिशन:- आज की इस पोस्ट के माध्यम से हम आप के साथ नासा का लूसी मिशन विषय

के बारे में  चर्चा करेंगे| नासा का लूसी मिशन क्या है, इस मिशन का नाम लूसी क्यों रखा गया तथा इस

मिशन का क्या उद्देश्य है, इन सब के बारे में विस्तार से पढेंगे? इससे पहले की पोस्ट में हम आप को

Planets Name in Hindi and English के बारे में विस्तार से बता चुके हैं|

नासा का लूसी मिशन:-

शनिवार को अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा के द्वारा लूसी मिशन लॉन्च किया गया। नासा के वैज्ञानिक

इस मिशन के जरिए बृहस्पति ग्रह में ट्रोजन एस्टेरॉड्स का अध्ययन करेंगे।

नासा का विशेष रॉकेट इसकी पड़ताल के लिए बृहस्पति गृह के लिए रवाना किया गया। वैज्ञानिकों का

मानना है कि सौरमंडल के बारे में ऐसी कई नई बातें इस मिशन के जरिए पता चल सकेंगी जो अब तक

सामने नहीं आ पाई हैं।

लूसी मिशन की शुरुआत कैसे हुई?

डेढ़ टन के यान वाले लूसी मिशन को अगले 12 सालों में इस मिशन पर 981 मिलियन डॉलर अर्थात लगभग

73,60 करोड़ रुपये का खर्च किया जाएगा| लूसी मिशन के द्वारा इस दौरान सात ट्रोजन एस्टेरॉयड्स के पास

पहुंच कर उनका अध्ययन किया जायेगा|

ट्रोजन एस्टेरॉयड्स के आकार, संरचना, सतह की खासियत और तापमान आदि की जानकारी इसके द्वारा

जुटाई जाएगी।  इस यान का वर्ष 2025 में पहला एस्टेरॉयड् फ्लाईबाई होगा| इसके अन्य 7 ट्रोजन एस्टेरॉयड्स

के निकट से उड़ान साल 2027 तथा साल 2033 के बीच होने की उम्मीद बताई गई है|

NASA Asteroid Mission

नासा का लूसी मिशन:-

4 अरब मील के करीब या 6 अरब किलोमीटर यानी कि 600 करोड़ किलोमीटर की यह पूरी यात्रा बताई गई|

लगभग 4 बिलियन मील की यात्रा करने के लिए इस लुसी अंतरिक्ष यान को डिज़ाइन किया गया| लुसी यान के

द्वारा तथा इसके रिमोट सेंसिंग उपकरणों के द्वारा ट्रोजन क्षुद्रग्रहों के भौतिक गुणों तथा इसकी सतह की संरचना

का अध्ययन किया जायेगा|

फ़्लोरिडा में केप-कैनावेरल स्पेस फोर्स स्टेशन से भारतीय समयानुसार शनिवार की शाम तीन बजकर चार मिनट

पर लूसी मिशन ने एटलस-वी रॉकेट से उड़ान भरी|

वैज्ञानिकों का यह कहना है कि सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति की कक्षा में झुंड के रूप में मौजूद एस्टेरॉयड्स का अध्ययन

इस मिशन के जरिए किया जाएगा।

क्या है एस्टेरॉयड्स?

आमभाषा में एस्टेरॉयड्स को क्षुद्रग्रह या उल्कापिंड भी कहते हैं। ये धातु के टुकड़े या पत्थर के टुकड़े के रूप में मिलते हैं।

किसी तारे या ग्रह का जब कोई हिस्सा टूट जाता तो वह उल्कापिंड कहलाता है। यदि इसे सरल से सरल भाषा में

समझा जाये तो ग्रह का एक टुकड़ा।

एस्टेरॉयड्स कई आकार में विद्यमान रहते हैं। छोटे पत्थर से लेकर एस्टेरॉयड्स मीलों लम्बी चट्टान के रूप में हो सकते हैं।

बृहस्पति ग्रह के निर्माण के दौरान ये ट्रोजन एस्टेरॉयड्स अलग हो गए थे, ऐसा नासा के वैज्ञानिकों का मानना है ।

सौरमंडल की उत्पत्ति के बारे में अहम रहस्यों तथा इसकी जानकारियों का पता इनकी जांच करके ही लगाया जा सकता है।

इन्हीं एस्टेरॉयड्स की रिसर्च के दौरान जांच करने पर नई जानकारियां सामने आ सकती हैं।

मिशन का नाम लूसी क्यों रखा गया

एक इंसानी कंकाल से लूसी नाम का कनेक्शन है| इथियोपिया में हदान नाम की जगह पर 1974 में यह कंकाल

मिला था। वैज्ञानिकों ने काफी समय तक रिसर्च करने के बाद विश्व  का उसे सबसे पुराना मानव कंकाल बताया

तथा उसे लूसी नाम दिया था।

उसी मानव कंकाल के नाम पर नासा के वैज्ञानिकों ने अपने इस मिशन का नाम लूसी रखा। इस मानव कंकाल

के जीवाश्म ने ही मानव प्रजाति के विकास के बारे में जानकारी दी थी।

नासा का लूसी मिशन:-

विज्ञानियों का मानना है कि ट्रोजन एस्टेरॉयड 60 डिग्री तक या तो बृहस्पति के साथ या फिर उसके आगे अपनी

कक्षा में चलते हैं। दूसरे शब्दों मे हम कह सकते हैं कि क्षुद्रग्रह सूर्य की परिक्रमा दो समूहों में करते हैं, एक समूह

बृहस्पति ग्रह के पीछे रहता है तथा दूसरा समूह इस ग्रह के आगे रहता है| इन समूहों या झुंडों को ट्रोजन ऐस्टेरॉयड

कहते हैं|

क्षुद्रग्रह किसे कहते हैं?

ट्रोजन एस्टेरॉयड्स कई आकार में विद्यमान रहते हैं। छोटे पत्थर से लेकर एस्टेरॉयड्स मीलों लम्बी चट्टान के रूप

में हो सकते हैं।ट्रोजन एस्टेरॉयड को ही क्षुद्रग्रह कहते हैं|

गुरुत्वाकर्षण के कारण ये एस्टेरॉयड्स बृहस्पति और सूर्य के बीच चक्कर लगाते रहते हैं।

इससे कई बातें पता चल सकेंगी यदि यह पता चल जाए कि ट्रोजन उन्हीं चीजों से बना है जिससे बृहस्पति और चंद्रमा

बने हैं। क्षुद्रग्रहों का अध्ययन करने वाला नासा का यह पहला अभियान होगा|

Nasa ka Lucy Mission

नासा के इस लुसी मिशन का क्या लक्ष्य  है?

4.5 बिलियन वर्ष पहले बने हमारे सोलर सिस्टम की उत्पत्ति को जानना तथा इस सम्बन्ध में वैज्ञानिकों का मकसद

इस सम्बन्ध में नए खुलासे करना है।

वैज्ञानिकों के अनुसार जब सौरमंडल बन रहा था तो उस समय बहुत अधिक मात्रा में गैस के कण तथा धूल तेज

खिंचाव की वजह से एक साथ आए| इस कारण से सूर्य, अनेक ग्रह, कई उपग्रह तथा अन्य कई प्रकार के छोटे बड़े

पिण्डों का निर्माण हुआ था| कुछ मलबा या ऐस्टेरॉयड्स इस प्रक्रिया में बच गए थे

गुरुत्वाकर्षण शक्ति की वजह से बचे हुए ऐस्टेरॉयड्स या तो सूर्य में समा गए थे या फिर कुछ सौरमंडल के आउटर

एरिया में जमा हो गए थे| इन्हें कुइपर बेल्ट के रूप में जाना गया|

ट्रोजन ऐस्टेरॉयड सूर्य की परिक्रमा करते हैं| सौरमंडल की उत्पत्ति को लेकर कुइपर बेल्ट में जमा ऐस्टेरॉयड और

उसके ज़रिए नित नई बातें सामने आती रही हैं|

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