हिंदी व्याकरण

नवरात्र के पर्व

नवरात्र के पर्व
Written by Rakesh Kumar

नवरात्र के पर्व

नवरात्र के पर्व:- आइये विस्तार से जानते हैं नवरात्र के पर्व और मां दुर्गा के नौ स्वरूपों के बारे में तथा उनके मंत्रों के बारे में| इसके साथ आप को यह भी बताते हैं कि किस लिए माँ दुर्गा ने लिए थे ये अवतार?

इससे पहले की पोस्ट के माध्यम से  हमने आपको “दशहरा या विजयदशमी” के बारे में विस्तार से बताया था|

मां दुर्गा को शक्ति की देवी माना जाता है| वर्ष में दो बार मां दुर्गा के विभिन्न नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है| प्रारंभ में जब चैत्र प्रतिपदा का आरंभ होता है तो उस समय चैत्र नवरात्रों का शुभारम्भ हो जाता है| पूरे नौ दिनों तक नौ स्वरूपों के पूजन के पश्चात नवमी के रूप में चैत नवरात्रों का शुभ समापन  कर दिया जाता हैं।

आश्विन के शुक्ल पक्ष में वर्ष में दूसरी बार शारदीय नवरात्र का आयोजन किया जाता है। विजयदशमी से एक दिन पूर्व राम नवमी के दिन नौ दिनों के पश्चात शारदीय नवरात्र संपन्न हो जाते हैं।

मां दुर्गा के नौ स्वरूप:-

मां दुर्गा का प्रथम स्वरूप शैलपुत्री

प्रथम दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है| इन्हें भगवान शंकर की पत्नी पार्वती के रूप में भी जाना जाता है। इन्हें वृषभारूढा के नाम से भी जाना जाता है| वृषभ या बैल इनका वाहन है।

पूजा का मंत्र:-

वन्दे वांछितलाभाय, चंद्रार्धकृतशेखराम्‌।

वृषारूढां शूलधरां, शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

हिंदी अनुवाद

मैं अपने मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करने वाली, मनोवांछित फल प्रदान करने वाली, बैल की सवारी करने वाली, यशस्विनी और शूलधारिणी मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना करता हूं।

दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी

मां दुर्गा देवी के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा नवरात्र के दूसरे दिन की जाती है। मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में पर्वतराज के यहां पुत्री बनकर जन्म लिया| अपने जीवन में भगवान महादेव को पति के रूप में पाने के लिए महर्षि नारद के कहने पर कठोर तपस्या की थी। इसी कारण से ही इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा।

पूजा का मन्त्र:-

दधाना करपद्माभ्याम्, अक्षमालाकमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

हिंदी अनुवाद

इनके एक हाथ में कमण्डल है तथा एक हाथ में अक्षमाला है|  ऐसी उत्तम ब्रह्मचारिणीरूपा दुर्गा मां मुझ पर सदा अपनी कृपा प्रदान करे।

तीसरा रूप चंद्रघंटा

दुर्गाजी के तीसरे रूप चंद्रघंटा देवी का तीसरे दिन पूजन करने का विधान है। घंटे के आकार का अर्ध चंद्रमा इन देवी के मस्तक पर विराजमान है| इसी कारण से इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा।

देवी के इस रूप की पूजा करने से मन को अलौकिक शांति की प्राप्ती होती है| इनके पूजन से इस लोक में ही नही बल्कि परलोक में भी कल्याण की प्राप्ति होती है।

पूजा का मन्त्र:-

पिंडजप्रवरारूढा, चंडकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं तनुते मह्यं, चंद्रघंटेति विश्रुता।

हिंदी अनुवाद

चंडकादि अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित तथा सिंह पर सवार मां चंद्रघंटा मुझ पर सदा अपनी कृपा करें।

चौथा रूप कूष्मांडा

दुर्गाजी के चतुर्थ स्वरूप मां कूष्मांडा की पूजा और अर्चना नवरात्र के चौथे दिन की जाती है| इन्होंने  ब्रह्मांड की रचना की थी। इनका कूष्मांडा नाम इसी कारण से है।

इन्हें आदिशक्ति के नाम से भी जाना जाता है। ये सिंह पर सवार हैं|

पूजा का मन्त्र:-

सुरासंपूर्णकलशं, रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां, कूष्मांडा शुभदास्तु मे।।

हिंदी अनुवाद

कमलपुष्प से युक्त अमृत से पूर्ण कलश को धारण करने वाली और तेजस्वी कूष्मांडा मां हमारे सब कार्यों में शुभदायी सिद्ध हो|

पांचवां रूप मां स्कंदमाता

पांचवें स्वरूप में मां स्कंदमाता की पूजा और अर्चना नवरात्र के पांचवे दिन की जाती है। स्कंद शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का ही एक नाम है। कार्तिकेय अर्थात स्कंद की माता होने के कारण ही इसका नाम स्कंदमाता पड़ा।

स्कंदमाता के इस रूप की चार भुजाएं हैं| इनका वाहन सिंह है। निम्न मंत्र से इनकी आराधना करनी चाहिए-

पूजा का मन्त्र:-

सिंहासनगता नित्यं, पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी, स्कंदमाता यशस्विनी।।

छठा रूप मां कात्यायनी

दुर्गाजी के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की नवरात्र के छठे दिन पूजा की जाती है। इनकी उपासना करने वाले को चार पुरुषार्थ की प्राप्ति हो जाती है।

इन्होंने महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया जो कि कात्य गोत्र के थे|  इनका नाम कात्यायनी इसी कारण से पड़ा। सिंह इनका वाहन है।

चार पुरुषार्थ निम्न प्रकार से होते है-

1.- धर्म 2.-  अर्थ 3.-  काम 4.- मोक्ष

पूजा का मन्त्र:-

चंद्रहासोज्ज्वलकरा, शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्यात्, देवी दानवघातनी।।

सातवां रूप मां कालरात्रि

दुर्गाजी के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की नवरात्र के सातवें दिन पूजा और अर्चना का विधान है। मां कालरात्रि को तमाम आसुरिक शक्तियों का विनाश करने वाली बताया गया है।

इनके चार हाथ हैं तथा तीन नेत्र हैं| गर्दभ अर्थात् गधा इनका वाहन है।

पूजा का मन्त्र:-

एकवेणी जपाकर्ण, पूरा नग्ना खरास्थिता।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी, तैलाभ्यक्तशरीरिणी।

वामपादोल्लसल्लोह, लताकंटकभूषणा।

वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा, कालरात्रिभयंकरी।।

आठवां रूप महागौरी

दुर्गाजी के आठवें स्वरूप मां महागौरी की नवरात्र के आठवें दिन पूजा करने का विधान है। इनके वस्त्र तथा सभी आभूषण श्वेत हैं। बैल अर्थात् वृषभ इनका वाहन है जो कि सफेद रंग का ही है।

पुराणों में ऐसा वर्णन है कि पतिरूप में भगवान् शिव को पाने के लिये हजारों सालों तक इन्होंने कठिन तपस्या की थी इस कारण से इनका काला रंग पड़ गया था| भगवान् महादेव ने गंगा के जल से बाद में इनका रंग फिर से सफेद कर दिया था|

पूजा का मंत्र:-

श्वेते वृषे समारूढा, श्वेताम्बरधरा शुचि:।

महागौरी शुभं दद्यात्, महादेवप्रमोददाद।।

नौवां रूप सिद्धिदात्री

दुर्गाजी के नौवें स्वरूप मां सिद्धदात्री का नवरात्र के नौवें दिन पूजा अर्चना करने का विधान बताया गया है। मां सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली देवी हैं । इनका भी वाहन सिंह है। हमारे प्राचीन शास्त्रों में आठ प्रकार  की सिद्धियां बताई गई हैं। मां सिद्धिदात्री की पूजा और कृपा से ये आठों सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं|

पूजा का मंत्र:-

सिद्धगंधर्वयक्षाद्यै:, असुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात्, सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।

आठ सिद्धियों के नाम:-

आठ सिद्धियों के नाम निम्न प्रकार से बताएं गए हैं-

1.- अणिमा 2.-  महिमा 3.-  गरिमा 4.-  लघिमा 5.-  प्राप्ति 6.-  प्राकाम्य 7.-  ईशित्व 8.- वशित्व

निम्न श्लोक में आ जाते हैं माँ नवदुर्गा के सारे नाम

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।

 

 

 

 

 

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