जोजिला सुरंग
जोजिला सुरंग:- आज की इस पोस्ट के माध्यम से हम आप के साथ जोजिला सुरंग के बारे में चर्चा करेंगे|
सुरंग किसे कहते हैं, जोजिला सुरंग क्या है, इसका निर्माण कहाँ से कहाँ तक किया जाना है
तथा इसका सामरिक महत्त्व क्या है? इन सब के बारे में विस्तार से पढेंगे|
इससे पहले की पोस्ट में हम आप को “चक्रवाती तूफान गुलाब“ के बारे में विस्तार से बता चुके हैं|
क्या होती है सुरंग:
सुरंग या टनल ऐसा भूमिगत अर्थात भूमि के नीचे का रास्ता होता है, जिसे ज़मीन के नीचे
मिट्टी व पत्थर को खोदकर बनाया जाता है| टनल में ऊपर की पहाड़ियों, चट्टान या मिट्टी को नहीं हटाया जाता है।
इसका निर्माण खोदकर, विस्फोट के द्वारा, पहाड़ी को तोड़कर या फिर मिट्टी या पत्थर का मलबा हटाकर किया जाता है |
पुराने समय में भी सुरंगे बनाई जाती थी| उस समय में उनका अभिप्राय किसी भी ऐसे
मार्ग से होता था जो जमीन के नीचे-नीचे बनाया गया हो, चाहे वह किसी भी तरीके से बनाया गया हो|
बड़े-बड़े किलो में भी जमीन से नीचे बाहर निकलने के लिए टनल बनाई जाती थी|
कई बार प्राकृतिक तौर से बनी हुई सुरंगें भी बहुत देखने को मिल जाती हैं।
प्राय: दरारों से पानी नीचे जाता रहता है तथा रास्ता बनाता हुआ बहता रहता है|
यह एक सुरंगनुमा प्राकृतिक रास्ता बन जाता है|
जिसमें चट्टान का अंश भी घुलता है। इस प्रकार प्राकृतिक टनल या सुरंगें बन जाती हैं।
सुरंग का निर्माण
सुरंग या टनल निर्माण कार्य की आधुनिक विधियों में लोहे को ढाल कर मजबूत रोक लगाई जाती है।
बाहर के देश में भूमिगत रेलों के लिए इसी प्रकार सुरंगें की बनी हुई हैं जिनमें लोहे को ढाल कर
मजबूत रोक लगाई गई है|
आमतौर पर ऊपरी भाग को पहले काट लिया जाता है और उसके नीचे मजबूत रोक
लगाकर बाद में नीचे की ओर दीवारें बना दी जाती हैं। सुरंगे प्राय: पहाड़ी को काट-काट
कर बनाई जाती हैं|
पहाड़ी को बड़ी-बड़ी पत्थरों को काटने वाली मशीनों की सहायता से काटा जाता है|
जोजिला टनल
कश्मीर घाटी में हिमालय की पर्वत श्रेणियों के बीच इसी प्रकार की टनल को तैयार किया जा रहा है|
साल 2020 में इस टनल का निर्माण कार्य आरम्भ किया गया था| कश्मीर की घाटी
तथा लेह-लद्दाख के बीच का रास्ता बनाने के लिहाज से यह बहुत जरूरी था|
लगभग 14.5 किलोमीटर लंबी जोजिला टनल भारत-चीन सीमा पर आवाजाही के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है|
जोजिला सुरंग के निर्माण से लद्दाख जाने का रास्ता पूरे साल भर खुला रहेगा|
यह सुरंग सेना के साथ-साथ आम जनता और पर्यटकों के लिए भी बेहद अहम है।
सर्दियों के दिनों में जोजिला दर्रा बंद हो जाता है|
इसके बंद होने से सर्दियों में लेह लद्दाख का क्षेत्र शेष भारत से पूरी तरह कट जाता है|
जोजिला दर्रा का रास्ता भारत के लिए सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है|
लगभग 11578 फीट की ऊंचाई पर स्थित जोजिला दर्रा श्रीनगर-कारगिल-लेह हाइवे पर स्थित है|
इसी दर्रे से होकर के आगे लेह-लद्दाख तक जाया जाता है| जोजिला दर्रा सर्दियों के दिनो में बंद हो जाता है|
इसके बंद होने से लेह-लद्दाख का अत्यंत महत्त्वपूर्ण क्षेत्र सर्दियों में शेष भारत से पूरी तरह कट जाता है|
जोजिला टनल
लद्दाख क्षेत्र को शेष वर्ष भर भारत से जोड़ने के लिए लगातार मांग होती रही है और
अब जल्द ही यह मांग साकार रूप लेने जा रही है| केंद्रीय सड़क-परिवहन और राजमार्ग
मंत्री श्री नितिन गडकरी जी ने 15 अक्टूबर को जोजिला सुरंग से जुड़े निर्माण कार्य के लिए
इसकी शुरुआत कर दी है|
जोजिला टनल एशिया की सबसे लंबी सुरंग होगी| यह प्रोजेक्ट लगभग 6800 करोड़ रुपये की लागत का है|
जोजिला टनल की लंबाई लगभग 14.15 किलोमीटर है
यह टनल जोजिला दर्रे के नीचे 3 हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है|
इस टनल के जरिए न सिर्फ आम लोगों को फायदा मिलेगा बल्कि भारतीय सेना को भी बहुत फायदा मिलेगा|
इसके बनने से कारगिल से लद्दाख तक उनका आवागमन वर्ष भर बना रह सकेगा|
श्रीनगर से लेकरे लेह के बीच का सफर 3 घंटे से घटकर अब सिर्फ पन्द्रह मिनट का ही
रह जाएगा| तथा अब श्रीनगर-लेह के रास्ते पर बर्फबारी की चिंता भी समाप्त हो जाएगी|
जोजिला सुरंग की खासियत
इस सुरंग के बनने से भारत के कश्मीर में श्रीनगर, द्रास, करगिल और लेह के इलाके हर मौसम में जुड़े रहेंगे|
अंग्रेजों के समय भी इस बारे में कई बार विचार किया गया लेकिन उस समय कश्मीर
के इलाके में इतना निवेश करना उचित नहीं समझा गया|
देश के आजाद होने के बाद भी इस पर कई बार विचार किया गया लेकिन यह कार्य
सिरे नहीं चढ़ सका तथा इस पर ज्यादा काम नहीं किया जा सका। अब भारत सरकार
ने इस योजना पर कार्य करना शुरू कर दिया है।
अब वह दिन दूर नहीं होगा जब ये क्षेत्र किसी भी मौसम में भारत से अलग थलग नहीं
पड़ेंगे तथा साढ़े तीन घंटे की दूरी को महज 15 मिनट के समय में तय कर लिया जायेगा|
जब यह सुरंग बनकर तैयार हो जाएगी तो लेह-लद्दाख में राशन की आपूर्ति भी 12 महीने जारी रह सकेगी|
इस सुरंग के पूरा होने के पश्चात लद्दाख का संपर्क कश्मीर घाटी से बारह महीने बना रह सकेगा।
सर्दियों के दिनों में पूरे भारत से कटे रहने वाले यह क्षेत्र जब पूरे साल देश से जुड़ें रहेगें तो
उनका तेजी से विकास भी हो सकेगा।