छंद की परिभाषा तथा भेद
छंद की परिभाषा तथा भेद:- आज इस लेख के माध्यम से हम आपसे छंद की परिभाषा तथा भेद के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
इससे पहले की पोस्ट के माध्यम से हम आप को “रस के अंगो का वर्णन” के बारे में विस्तार से बता चुके हैं।
छंद का अर्थ:-
हिंदी साहित्य में छंद का अपना एक विशेष महत्व है। जिस प्रकार से अलंकार काव्य की शोभा बढ़ाते हैं उसी प्रकार से छंद कविता के शरीर को ढकने का साधन है। जिस प्रकार से बिना कपड़ों के हमारा शरीर शोभा नहीं देता है ठीक उसी प्रकार से छंद के बिना काव्य रचना शोभा नहीं देती है।
हिंदी काव्य रचना में छंद के द्वारा ही काव्य को सुंदर एवं आकर्षक रूप धारण करके इसको और अधिक सुंदर एवं आकर्षक बनाया जा सकता है। यह शब्द संस्कृत भाषा के ‘छिदि धातु’ से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है ढकना ।
छंद की परिभाषा:-
“छंद एक ऐसी काव्य पद बद्ध रचना होती है जिसमें अक्षरों, मात्राओं, यति, गति व लय आदि का विशेष ध्यान रखा जाता है।”
दुसरे शब्दों में छंद की परिभाषा को इस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है-
“जब हिंदी काव्य रचना में अक्षरों, मात्राओं, गति, यति, लय आदि का विशेष पालन होता है, तो उसे छंद कहते हैं।”
हिंदी भाषा में छंद के प्रकार :-
साहित्य के अंदर छंद की रचना निम्नलिखित तत्वों के आधार पर की जाती है-
1.- पाद या चरण
2.- वर्ण और मात्रा
3.- लघु और गुरु
4.- यति
5.- गति
छंद की परिभाषा व भेद
1.- पाद या चरण-
प्रत्येक छंद में चार चरण या पाद होते हैं |चरणों की रचना निश्चित वर्णों या मात्राओं के आधार पर होती हैं। लेकिन कुछ छंदों में 4 चरण होते है, लेकिन वे चरण 2 पंक्तियों में लिखे जाते हैं|
जैसे:- दोहा, सोरठा तथा बरवै आदि।
चौपाई में 4 पद शामिल होते हैं जो कि 2 पंक्तियों के अंदर लिखे जाते हैं| छंद के 4 चरणों में पहले और तीसरे पाद को विषम पाद या चरण तथा दूसरे और चौथे पाद को सम पाद या चरण कहते हैं।
2.- वर्ण और मात्रा-
वर्ण:- हिंदी काव्य शास्त्र के प्रत्येक छंद में वर्णों की गणना करते समय चाहे वर्ण ह्रस्व हो या फिर दीर्घ हो, उसे एक ही वर्ण माना जाता है।
जैसे- नयन, दहन, अमर, अजय, नकल, नदी, कमल आदि।
मात्रा:-मात्राओं की गणना करते समय लघु स्वर की एक मात्रा और दीर्घ स्वर की दो मात्राएं मानी जाती है।
जैसे- सविता, साजन, रौनक आदि
स – एक मात्रा
वि – एक मात्रा
ता – दो मात्राएं
रौ – दो मात्राएं
न – एक मात्रा
क – एक मात्रा
छंद की परिभाषा एवं प्रकार:-
3.- लघु और गुरु-
लघु:- एक ह्रस्व स्वर की मात्रा वाला अक्षर लघु अक्षर कहलाएगा। इसके लिए चिह्न (।) का प्रयोग किया जाता है।
जैसे:- नकल, फसल।
न – ।
क – ।
ल – ।
नकल – । । ।
फ़ – I
स – I
ल – I
फसल – । । ।
गुरु – हिंदी काव्य में दीर्घ स्वर की मात्रा वाला अक्षर गुरु अक्षर कहलाता है। इसके लिए (ऽ) चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
जैसे:- भाला, नीला, नीतू सीता, गीता आदि।
भाला – ऽ ऽ ऽ
नीला – ऽ ऽ
नीतू – ऽ ऽ
सीता – ऽ ऽ
गीता – ऽ ऽ
छंद की परिभाषा एवं प्रकार
4.- यति:- हिंदी भाषा में यति का अर्थ होता है, विराम। कविता या छंद को पढ़ते समय जहां पर हम रुकते हैं या जहां विराम लेते हैं, वहां पर यति का प्रयोग किया जाता है। यति के प्रयोग करने से छंद में मधुरता, सरसता तथा स्पष्टता आ जाती है। यति के ना होने से अर्थ बदल जाता है।
जैसे-
दान,नफा , तेज, त्याग, मनोबल
बाल दल सजा हो।
उस पार, चलो, सुयोधन तुमसे
कहना, कहां, कब हारा।
5.- गति:- काव्य में जैसे, नदी का प्रवाह होता है उसी प्रकार गति का होना आवश्यक है। कविता के इस प्रवाह को ही गति कहते है|
छंद की परिभाषा एवं प्रकार:-
वर्ण एवं मात्रा के आधार पर छंद के प्रकार:-
वर्ण एवं मात्रा के आधार पर छंद के दो प्रकार होते हैं-
1.- वर्णिक छंद
2.- मात्रिक छंद
छंद की परिभाषा एवं प्रकार:-
1.- वर्णिक छंद:– काव्य साहित्य में वर्णों पर आश्रित रहने वाले छंदो को वर्णिक छंद कहते हैं। इनकी व्यवस्था वर्णों की गणना के आधार पर होती है| हिंदी साहित्य में वर्णिक छंद को वृत भी कहा जाता हैं।
गण:–
तीन वर्णों के समूह गण कहलता है।
जैसे-
ऽ ऽ । । । । । । । । । । । । ।
आराम जानवी नीरज सुमन सुरेश
वर्ण गण, गिनती में आठ प्रकार के हो सकते हैं जहां-
लघु – ।
गुरु – ऽ
i.यगण – इसमें आदि अक्षर लघु शेष अक्षर गुरु – । ऽ ऽ
- मगण – इसमें तीनों अक्षर गुरु – ऽ ऽ ऽ
iii. तगण – इसमें पहले दो गुरु तथा शेष लघु – ऽ ऽ ।
- रगण – इसमें मध्य लघु शेष गुरु – ऽ । ऽ
- जगण – इसमें मध्य गुरु शेष लघु – । ऽ ।
- भगण – इसमें आदि गुरु शेष लघु – ।।
vii. नगण – इसमें तीनों अक्षर लघु – ।।।
viii. सगण – इसके पहले दोनों लघु तथा अंतिम गुरु – ।। ऽ