गुरु रविदास जयंती
गुरु रविदास जयंती:- आज की इस पोस्ट के माध्यम से हम आप के साथ गुरु रविदास जयंती पर निबंध के बारे में चर्चा करेंगे| भारत में गुरु रविदास जयंती का त्यौहार कैसे मनाया जाता हैं, इस के बारे में विस्तार से पढेंगे?
इससे पहले की पोस्ट में हम आप को “ बसंत पंचमी पर निबंध “ के बारे में विस्तार से बता चुके हैं|
गुरु रविदास जयंती:-
हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल माघ महीने की पूर्णिमा तिथि पर संत रविदास की जयंती मनाई जाती है। रविदास को शिरोमणि रैदास, सतगुरु, जगतगुरु आदि नामों से सम्बोधित किया जाता है। गुरु रविदास भक्ति आंदोलन के एक प्रसिद्ध संत थे। उनके भक्ति गीतों और छंदों ने भक्ति आंदोलन पर स्थायी प्रभाव डाला है।
रविदास जयंती का इतिहास और महत्व:-
इतिहास के अनुसार, ‘रविदास जयंती’ या ‘रैदास जयंती’ प्रत्येक वर्ष सम्पूर्ण भारत में हर्ष और उल्लास के साथ मनायी जाती है। यह गुरु रविदास का जन्मदिन होता है। गुरू रविदास (रैदास) का जन्म काशी में माघ पूर्णिमा के दिन रविवार को संवत 1433 को हुआ था। उनके पिता रग्घु तथा माता का नाम घुरविनिया था। उनकी पत्नी का नाम लोना बताया जाता है। उनकी जयंती प्रति वर्ष हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार माघ माह की पूर्णिमा को मनायी जाती है।
उनका जन्मस्थान अब श्री गुरु रविदास जन्म स्थान के रूप में जाना जाता है और यह गुरु रविदास के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थान है। गुरु रविदास ने सभी के लिए समानता और सम्मान की वकालत की है। चाहे उनकी जाति कुछ भी हो। उन्होंने लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया और लिंग या जाति के आधार पर समाज के विभाजन का विरोध किया।
Guru Ravidas Jayanti
कुछ लोग कहते हैं कि वह एक अन्य प्रमुख भक्ति आंदोलन कवि मीरा बाई के आध्यात्मिक मार्गदर्शक भी थे। संत रविदास एक समाज के न होकर पूरी मानवता के गुरु थे। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों व छुआ-छूत को समाप्त किया।
संत रामानन्द के शिष्य बनकर उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया। संत रविदास जी ने स्वामी रामानंद जी को कबीर साहेब जी के कहने पर गुरु बनाया था, जबकि उनके वास्तविक आध्यात्मिक गुरु कबीर साहेब जी ही थे। उनकी समयानुपालन की प्रवृति तथा मधुर व्यवहार के कारण उनके सम्पर्क में आने वाले लोग भी बहुत प्रसन्न रहते थे। प्रारम्भ से ही रविदास जी बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था।
कैसे मनाते हैं रविदास जयंती:-
गुरु रविदास के अनुयायी उनके सम्मान में आरती और पूजा करते हैं। वाराणसी में उनके जन्म स्थान पर बने श्री गुरु रविदास जन्मस्थान मंदिर में भव्य समारोह का आयोजन किया जाता है। इस दिन रविदास के अनुयायी पवित्र नदी में डुबकी भी लगाते हैं। मानवतावाद पर गुरु रविदास कहते थे, ”अगर ईश्वर वास्तव में प्रत्येक मनुष्य में निवास करता है, तो जाति, पंथ और इस तरह के अन्य सामाजिक आदेशों के आधार पर व्यक्तियों को अलग करना बिल्कुल व्यर्थ है।”
Guru Ravidas Jayanti In Hindi:-
संत रविदास ने अपने ज्ञान से समाज को संदेश दिया, व्यक्ति बड़ा या छोटा अपने जन्म से नहीं अपितु अपने कर्म से होता है। रैदास, धर्म के पथ पर चलने वाले महान पुरुष थे। इनके विचारों, सिद्धान्तों को सदैव स्वयं में जीवित रखने के लिए और उनके जन्म दिवस को उत्सव के रूप में मनाने हेतु हर वर्ष संत रविदास जयंती मनाया जाता है।
संत रविदास जयंती पर निबंध
रविदास जयंती के दिन पूरे देश में धूम रहती है। गुरु रविदास मंदिर में भजन-कीर्तन का आयोजन होता है। मंदिर को बड़ी भव्यता के साथ सजाया जाता है। इसके अलावा उनको मानने वाले लोग इस दिन उनकी दी हुई सीख को याद करते हैं। पूरे देश में इसे उत्सव की भांति मनाया जाता है। अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम और झाकियां निकाली जाती है। गुरुद्वारो में भी उनके वचनों को याद किया जाता है। साथ ही ‘शबद कीर्तन’ जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते है।
गुरु रविदास जी की कथा:-
रविदास का जन्म वाराणसी के सीर गोवर्धन गाँव के एक शुद्र परिवार में हुआ था। इनके पिता का जुते सिलने का व्यवसाय था। रविदास बचपन से ही होनहार बच्चे थे। रविदास जी ने भी अपना पारंपरिक व्यवसाय चुना। इन्हें बचपन से ही साधु-संतो की संगत अच्छी लगती थी। जिस कारण साधु-संतो को फ्री में ही जुते-चप्पल दे देते थे। उनका यह दयालु स्वभाव उन पर भारी पड़ा।
उनके पिता ने क्रुध्द होकर उन्हें घर से निकाल दिया। लेकिन फिर भी रविदास जी ने साधु-संतो की सेवा करना नहीं छोड़ा। वे अपना काम करते-करते लोगों को ज्ञान की बातें बताते रहते थे। वो भी अपने मधुर स्वभाव और ज्ञान के कारण बहुत शीघ्र ही लोकप्रिय हो गए।
गुरु रविदास जयंती निबंध:-
गुरु रविदास अपना काम करते-करते दोहों को गाया करते थे, और बड़े मनोयोग से ईश्वर को याद करते और मगन होकर अपना काम करते। उनके अनुसार कर्म ही सच्ची पूजा होती है। वो धार्मिक प्रसंगो और कथाओं के जरिये लोगों का पथ प्रकाशित करते थे। गुरु रविदास जात-पात से बहुत ऊपर थे। वे ईश्वर की भक्ति-भावना को ही श्रेष्ठ मानते थे। वे कहते थे, कि ईश्वर कर्म नहीं देखता, केवल आपकी सच्ची भावना, श्रद्धा, भक्ति और आस्था देखता है।
Essay On Sant Ravidas In Hindi
उनकी सीख से प्रेरित होकर सिख धर्म के 5वें गुरु, गुरु अर्जुन देव ने गुरु ग्रंथ साहिब में उनके चालीस पदों को जोड़ा। यही कारण है कि, उन्हें सभी धर्म के लोग मानते है। भारत के पंजाब प्रांत में रविदास जयंती बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती है। गुरु-धामो को हफ्ते भर पहले से ही सजा दिया जाता है। और इस विशेष तौर पर उनके द्वारा लिखे पदो को पढ़ा जाता है, जो सिक्खों के धर्म-ग्रंथ में जोड़ा गया है।
निष्कर्ष:-
ऐसा माना जाता है कि रविदास मंदिर की आधारशिला संत हरि दास द्वारा आषाढ़ संक्रांति के दिन रखी गई थी, गुरु रविदास इसी स्थान पर रहते थे और भक्ति करते थे। साथ ही इस उद्देश्य के लिए संत सरवन दास द्वारा विशेष रूप से चित्रित डेरा बल्लन के भक्तों की एक बड़ी संख्या थी। गुरु का जन्मदिन मनाने के लिए, धर्म के पवित्र ग्रंथ अमृतबानी गुरु रविदास जी के अनुयायियों द्वारा पढ़ा जाता है। हर साल गुरु रविदास की जयंती के मौके पर, मंदिर देश-विदेश से लाखों भक्तों को आकर्षित करता है। यह वाराणसी से दो किमी की दूरी पर स्थित है। इस विशेष तौर पर गंगा स्नान करना अच्छा माना जाता है। लोग दूर-दूर से पूर्णिमा के दिन काशी आते है। ऐसी मान्यता है कि जयंती के दिन गंगा में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते है और गुरु रविदास जी से आशीर्वाद भी मिलता है।