क्रिया की परिभाषा व भेद
क्रिया की परिभाषा व भेद:- आज हम इस पोस्ट के माध्यम से आपसे क्रिया की परिभाषा व भेद विषय के बारे में चर्चा करेंगे। क्रिया किसे कहतें हैं? इसके कितने भेद हैं? हिंदी व्याकरण में क्रिया का क्या महत्तव है? इन सभी विषयों के बारे में विस्तार से चर्चा की जाएगी|
इससे पहले की post में हम आपको ‘अव्यय की परिभाषा व इसके भेद ‘ के बारे में पूर्ण रूप से बता चुके हैं|
निम्न वाक्यों को देखते हैं –
मैं हॉकी खेल चुका था|
हमने गाने गाये|
चपड़ासी ने घंटी बजाई|
वह पत्र लिख चुका था|
मोहन स्कूल जा रहा है|
अध्यापक चाय पी रहा है|
तुम नोवल पढ़ते थे|
तुमने अपना पाठ याद कर लिया था|
मैं दरवाजा खोलता हूँ|
वह गावं जा चुकी थी|
उन्होंने घोड़ा बेच दिया था|
पुलिस ने चोर पकड़ लिया था|
नेहा फूटबाल खेल चुकी थी|
मैंने नाश्ता नहीं किया|
कपिल ने सेंचुरी पूरी कर ली थी|
वह पिक्चर देख रहा है|
तुमने मेरी आज्ञा मान ली थी|
आपकी गाड़ी निकल गई है|
डॉक्टर ने रोगी को देख लिया था|
वह जा चुका था|
उपरोक्त सभी वाक्यों का अध्ययन करने के पश्चात् हमें यह ज्ञात हुआ कि कर्ता के द्वारा किसी ना किसी रूप में कोई ना कोई काम किया जा रहा है |
जैसे –जाना, देखना, निकलना, मानना, पढना, पूरा करना, खेलना, पकड़ना, याद करना , धोना, आदि | इस काम करने को ही क्रिया कहा जाता है |
अर्थ व परिभाषा
क्रिया की परिभाषा :-
“शब्द के जिस रुप से हमें किसी काम के करने या होने का बोध हो, उसे क्रिया कहते हैं |”
अर्थात जिन शब्दों से किसी काम का करना या होना पाया जाए, वे शब्द क्रिया कहलाते हैं|
जैसे:- चलना, रोना, देखना, नाचना, चखना, पीना, लेना, बैठना, देना, धोना, लाना, भेजना, ताकना, बजाना, ध्यान करना, जाना, उठना, नाचना आदि|
धातु का अर्थ :- ‘क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं’|
जब किसी भी धातु को क्रिया के रूप में लिखना होता है, तो धातु रूप के साथ ना प्रत्यय लगा कर क्रिया का रूप बनाया जाता है |
जैसे:-
देख + ना= देखना
खेल + ना = खेलना
पा + ना = पाना
पी + ना = पीना
उठ + ना = उठना
गा + ना = गाना
बैठ + ना = बैठना
नाच + ना = नाचना
पढ़ + ना = पढ़ना
बोल + ना = बोलना
क्रिया के भेद या प्रकार
क्रिया का दो प्रकार से वर्गीकरण किया जा सकता है:-
1.- कर्म के आधार पर
2.- रचना के आधार पर
क्रिया के भेदों का वर्णन :-
1.- कर्म के आधार पर
कर्म के आधार पर क्रिया के दो भेद होतें है :-
(1) अकर्मक क्रिया
(2)सकर्मक क्रिया
(1) अकर्मक क्रिया:- अकर्मक शब्द दो शब्दों के मेल से बना है, अ + कर्मक। इसका अर्थ यह हुआ कि बिना कर्म के या कर्म के बिना क्रिया।
‘जिन क्रियाओं के प्रयोग में कर्म की आवश्यकता नहीं होती है तथा क्रिया के व्यापार का फल कर्ता पर पड़ता है, उन्हें अकर्मक क्रिया कहते हैं’|
जैसे:- धोना, चलना, हंसना, देखना, गाना, चमकना, भागना, ठहरना , तैरना, कूदना, पीना, मरना आदि।
(2) सकर्मक क्रिया:- सकर्मक अर्थात स + कर्मक । इसका अर्थ यह हुआ कर्म के साथ|
‘ जिन क्रियाओं के प्रयोग में कर्म की आवश्यकता रहती है, अर्थात क्रिया के व्यापार का फल कर्म पर पड़ता है, उन्हें सकर्मक क्रिया कहते हैं’|
जैसे:- तकना, समझाना, सुनाना, पढ़ना, लिखना, दिखाना, पीना, धोना, लेना, देना, खरीदना, बेचना ,पढ़ाना, बढ़ाना ,पकाना, सिलाना, सिलना आदि ।
सकर्मक क्रिया के भेद
सकर्मक क्रिया दो प्रकार की होती हैं :-
(1) एककर्मक क्रिया
(2) द्विकर्मक क्रिया
(1) एककर्मक क्रिया – जिन सकर्मक क्रियाओं में केवल एक ही कर्म होता है, उन्हें एककर्मक क्रिया कहतें हैं ।
जैसे –
सोनम पाठ पढती है ।
मोहन गाना गाता है ।
राजन सुलेख लिखता है ।
राधा खाना बनाती है ।
तनुज आम खाता है ।
रोशन बाजार जाता है।
(2) द्विकर्मक क्रिया:- इन सकर्मक क्रियाओं के प्रयोग में दो कर्म होते हैं, अत: इन्हें द्विकर्मक क्रिया कहते हैं ।
जैसे:-
भीलनी ने राम को फल दिए ।
सीता ने राधा को कपड़े दिए ।
युधिष्टर ने भीम को खीर दी ।
देव ने नीता को रामायण की पुस्तक दी।
राजू ने दादी को रोटी दी ।
ललिता ने सुनीता को खिलौने दिए।
हिंदी व्याकरण में क्रिया के भेद या प्रकार:-
2.- रचना के आधार पर क्रिया के भेद:-
रचना के आधार पर क्रिया को पांच भागों में वर्गीकृत किया जा सकता हैं :-
(1)सामान्य क्रिया
(2)संयुक्त क्रिया
(3)नामधातु क्रिया
(4)प्रेरणार्थक क्रिया
(5) पूर्वकालिक क्रिया
(1) सामान्य क्रिया:-‘जिन वाक्यों में एक क्रिया होती है उन्हें सामान्य क्रिया कहते हैं।”
जैसे:-
अमीता ने गाना गाया|
देवेंदेर पाठ पढता है |
शानू ने रोटी खाई।
(2) संयुक्त क्रिया: –ये वे क्रियाएं होती है जो दो या दो से अधिक क्रियाओं के योग से बनती हैं, संयुक्त क्रिया कहलाती हैं।
जैसे-
कुम्भकरण जाग गया है।
रावण सो गया है।
जामवंत अपने घर चला गया है।
रामू बाजार से लौट आया है ।
शायद रोशनी सो गई है।
नामधातु क्रिया
(3) नामधातु क्रिया- वे क्रियाएं जो संज्ञा, सर्वनाम व विशेषण शब्दों से बनी हो, नामधातु क्रियाएं कहलाती हैं ।
जैसे –
शर्म से शर्माना ।
धक-धक से धड़काना ।
नरम से नर्माना ।
खटखट से खटखटाना ।
लालच से ललचाना ।
अपना से अपनाना ।
बात से बतियाना ।
टप-टप से टपकाना |
(4) प्रेरणार्थक क्रिया:- जिन क्रियाओं को, कर्ता स्वयं न करके किसी दूसरे को क्रिया करने की प्रेरणा देता है, उन्हें प्रेरणार्थक क्रियाएं कहते हैं ।
जैसे :-
अध्यापिका बच्चे से पाठ पढ़वाती है ।
पिता बेटी से खाना पकवाता है ।
नरेश सुरेश से पटाखा चलवाता है ।
परशुराम राम से बाण चलवाता है।
पिता-पुत्र को खिलौने दिलवाता है ।
सुधीर सोनू से बाल कटवाता है ।
कृष्णा सोनी से कपड़े धुलवाती है ।
(5) पूर्वकालिक क्रिया- जैसा कि इसके नाम से विदित होता है, पूर्वकालिक शब्द का अर्थ है- पहले से ही पूर्ण हुई क्रिया। इस प्रकार पूर्णकालिक क्रिया का अर्थ हुआ- पहले समय में पूर्ण हुई या संपन्न हुई क्रिया।
‘वे क्रियाएं जिनकी रचना मूल धातु में ‘कर’ या ‘करके’ लगाकर की जाती है, पूर्वकालिक क्रियाएं कहलाती हैं’|
जैसे:-
टोनी दौड़ कर तालाब में कूद गया ।
सुनीता ने घर जाकर खाना पकाया ।
रागनी ने भागकर ट्रेन पकड़ी ।
इशु ने पाठ याद करके सुनाया ।
कार्तिक खेल कर खुश हो गया।
विजय थक कर सो गया।