हिंदी व्याकरण

अलंकार की परिभाषा व भेद

अलंकार की परिभाषा व भेद
Written by Rakesh Kumar

अलंकार की परिभाषा व भेद

 

अलंकार की परिभाषा व भेद:- आज इस पोस्ट के माध्यम से हम  आपसे अलंकार की परिभाषा व भेद के बारे में चर्चा करेंगे| अलंकार किसे कहतें हैं, इसका क्या अर्थ एवं परिभाषा है तथा इसके कितने भेद हैं इन सब के बारे में  विस्तार से जानेंगे।

इससे पहले की पोस्ट के माध्यम से आप “रस के अंगो का वर्णन”  के बारे में विस्तार से पढ़ चुके हैं।

अलंकार का अर्थ:-

हिंदी व्याकरण की भाषा में अलंकार का सामान्य अर्थ होता है किसी को अलंकृत करना या शोभा बढ़ाना। हम यह भली भांति जानते हैं कि जिस प्रकार औरतें अपने सौंदर्य को बढाने के लिए विभिन्न प्रकार के आभूषण पहनती हैं, ठीक उसी प्रकार से कवि भी अपनी कविता में शोभा बढ़ाने के लिए अलंकारों का प्रयोग करते हैं। अलंकारों के प्रयोग से कविता को और अधिक आकर्षक, प्रभावशाली व सुंदर बनाया जा सकता है।

अलंकार की परिभाषा:-

काव्य में प्रयोग किये जाने वाले शब्दों और इसके अर्थ में चमत्कार उत्पन्न कर कविता की शोभा बढ़ाने वाले तत्वों को अलंकार कहते हैं।

अलंकार के भेद:-

अलंकार के मुख्य रूप से दो प्रकार या भेद होते हैं-

1.- शब्दालंकार

2.- अर्थालंकार

 

1.- शब्दालंकार- काव्य में जब शब्दों के कारण आकर्षण उत्पन्न हो, वहां पर शब्द अलंकार होता है। शब्दालंकार में अगर शब्द विशेष की जगह यदि उसका पर्यायवाची रख दिया जाए, तो वहां पर सारा आकर्षण समाप्त हो जाता है।

अत: शब्दालंकार में शब्दों का विशेष महत्व होता है।

जैसे:-

कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।

वह खाए बौराय नर, इह पाये बौराय।

उपर के इस दोहे में प्रयोग शब्द कनक के अगर पर्यायवाची शब्द सोना,  धतूरा,  गेहूं इत्यादि प्रयोग कर दिए जाएं तो सारा आकर्षण समाप्त हो जाएगा।

शब्दालंकार के प्रकार-

(1). अनुप्रास अलंकार

(2). यमक अलंकार

(3). श्लेष अलंकार

(4). पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार

 

हिंदी भाषा में अलंकार के भेदों का वर्णन

(1). अनुप्रास अलंकार:- काव्य में जब व्यंजन वर्णों के बार-बार प्रयोग के कारण आकर्षण उत्पन्न हो, वहां अनुप्रास अलंकार होता है।

जैसे:-

स्वच्छ चांदनी बिछी हुई है,

अवनि और अंबर तल में।

चारु चंद्र की चंचल किरणें,

खेल रही हैं जल थल में।

उपरोक्त काव्यांश में ‘च’, ‘ल’ एवं ‘अ’ वर्णों का बार-बार प्रयोग किया गया है। अत: इसी कारण से इसमें अनुप्रास अलंकार है।

 

(2). यमक अलंकार:- काव्य में जब किसी शब्द के एक से अधिक बार प्रयोग होने के कारण आकर्षण उत्पन्न हो, वहां पर यमक अलंकार होता है।

जैसे:-

माला फेरत जुग गया, फिरा न मनका फेर।

कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।

उपर के इस उदाहरण में ‘मनका’ शब्द का भिन्न भिन्न अर्थों में प्रयोग किया गया है।

मनका शब्द का एक अर्थ माला में पिरोया जाने वाला मोती और दूसरा अर्थ है इनसान का अपना मन। इसीलिए इसमें यमक अलंकार है।

 

अलंकार की परिभाषा व प्रकार:-

(3). श्लेष अलंकार:- काव्य में जहां पर प्रयोग किये जाने वाले शब्द के एक से अधिक अर्थ निकलें, वहां श्लेष अलंकार होता है।

जैसे:-

रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।

पानी गए न ऊबरे मोती मानुष चून।

उपर के उदाहरण में प्रयोग पानी शब्द के अनेक अर्थ निकल रहे हैं।

मोती के अर्थ में- चमक

मानुष के अर्थ में- इज्जत

चून के अर्थ में- पानी

अत: इस उदाहरण में श्लेष अलंकार है।

(4). पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार:- काव्य में जिस जगह पर किसी शब्द को बार-बार प्रयोग किया जाता हो, लेकिन उसके अर्थ में भिन्नता ना हो, वहां पर पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होता है।

जैसे:-

लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों की गरिमा।

डाल-डाल अली पिक के गायन का समां बंधा।

सूरज है जग का बुझा बुझा।

मीठा-मीठा रस टपकता।

झूम झूम मृदु गरज-गरज घनघोर|

अलंकार की परिभाषा तथा भेद

उपर के उदाहरण में प्रयोग किये गए शब्द जैसे लाख, कोटि, डाल, बुझा, झूम, गरज इत्यादि की सामान्य अर्थों में पुनरावृति हुई है। इसी कारण से इनमें पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

2.- अर्थालंकार:- जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट होता है अर्थ अलंकार अर्थात जहां पर अर्थ के कारण आकर्षण उत्पन्न हो ।

काव्य में जहां पर शब्दों के अर्थ के कारण आकर्षण उत्पन्न होता हो, वहां अर्थालंकार होता है।

नील परिधान बीच सुकुमार,

खुल रहा मृदुल अधखुला अंग।

खिला हो ज्यों बिजली का फूल,

मेघवन बीच गुलाबी रंग।

उपरोक्त के उदाहरण में नील परिधान उपमेय में बादल के भीतर  चमकने वाली बिजली उपमान की संभावना होने के कारण अर्थालंकार है।

 

अर्थालंकार के प्रकार:-

(1). उपमा अलंकार

(2). रूपक अलंकार

(3). उत्प्रेक्षा अलंकार

(4). मानवीकरण अलंकार

(6). अतिशयोक्ति अलंकार

(1). उपमा अलंकार: काव्य में जहां पर  रूप, रंगो या गुणों के कारण उपमेय की उपमान से तुलना की जाती हो, वहां उपमा अलंकार का प्रयोग होता है। उपमा अलंकार के चार अंग होते हैं|

(i). उपमेय- काव्यांश में जिसकी क्षमता की जाती है, उसे उपमेय कहते हैं

(ii). उपमान- काव्यांश में जिससे क्षमता की जाती है, उसे उपमान का कहते हैं।

(iii). वाचक शब्द- काव्यांश में उपमेय और उपमान की क्षमता प्रकट करने वाले शब्दों को वाचक शब्द कहते हैं।

(iv). साधारण धर्म- काव्यांश में उपमेय और उपमान में गुण की समानता को साधारण धर्म कहते हैं।

जैसे:-

पीपर पात सरिस मन डोला।

उपर के उदाहरण में

1.- उपमेय- मन

2.- उपमान- पीपर पात

3.- वाचक शब्द– सरिस

4.- साधारण धर्म- डोला

उपमा अलंकार का अन्य उदाहरण:-

मुख बाल-रवि सम

लाल होकर ज्वाला-सा बोधित हुआ।

उपर के उदाहरण में गुस्से से लाल मुख की तुलना सुबह के सूर्य से की गई है।

अलंकार की परिभाषा व प्रकार

 

(2). रूपक अलंकार:- हिंदी काव्य में जहां उपमेय में उपमान का आरोप होता हो, वहां रूपक अलंकार का प्रयोग होता है। जैसे:-

मैया मैं तो चंद्र-खिलौना लेहौं।

इस उदाहरण में चंद्र उपमेय पर उपमान खिलौना का आरोप होने के कारण रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है।

माया दीपक नर पतंग,

भ्रमि भ्रमि इवै पड़ंत।

उपर के उदाहरण में ‘माया’ उपमेय पर ‘दीपक’ उपमान का तथा ‘नर’ उपमेय पर ‘पतंग’ उपमान का आरोप होने के कारण रूपक अलंकार का प्रयोग इया गया है।

(3). उत्प्रेक्षा अलंकार:- काव्य में जहां उपमेय में उपमान की संभावना पाई जाती हो, वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है ।इस अलंकार में जनु, मनु, जानो, मानो, आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

जैसे-

उस काल मारे क्रोध के, तनु कांपने उनका लगा।

मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।।

उपरोक्त उदाहरण में उपमेय में सागर उपमान की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।

अलंकार की परिभाषा व प्रकार:-

(4). मानवीकरण अलंकार:-हिंदी काव्य में जहां जड़ प्रकृति के स्थान पर मानवीय भावनाओं तथा क्रियाओं का प्रयोग होता है, वहां मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया जाता है ।

जैसे:-

दिवसावसान का समय

मेघमय आसमान से उतर रही है,

वह संध्या सुंदर परी सी।

उपर के  उदाहरण में सूर्यास्त के समय सांयकाल को एक परी के समान धीरे-धीरे नभ से उतरते हुए दिखाया गया है । अत: यहां मानवीकरण अलंकार है।

अलंकार के भेदों का वर्णन

 

(5). अन्योक्ति अलंकार:- हिंदी काव्य में जहां उपमान के माध्यम से उपमेय के वर्णन से उपमान अप्रस्तुत और उपमेय प्रस्तुत होता है।

जैसे:-

नहिं पराग, नहिं मधुर मधु, नहिं विकास एहि काल।

अलि कली ही सो बंध्यो, आगे कौन हवाल।”

उपर के  उदाहरण में उपमान भंवरे और कली के द्वारा उपमेय राजा जयसिंह की नायिका की ओर संकेत किया गया है। इसमें यह बताया गया है कि किस प्रकार से राजा जयसिंह अपनी बहुत ही कम उम्र की प्रेमिका के प्रति बहुत अधिक आसक्त हो गया है। अत: इस उदाहरण में अन्योक्ति अलंकार है।

(6). अतिशयोक्ति अलंकार:- काव्य में अतिशयोक्ति का अर्थ है किसी भी विषय को बहुत अधिक बढ़ा चढ़ा कर कहना।

हिंदी काव्य में जब किसी वस्तु-विषय का वर्णन जब बहुत बढ़ा चढ़ाकर किया जाए, तो वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है।

जैसे:-

हनुमान की पूंछ को लगन न पाई आग ।

लंका सगरी जल गई गए निशाचर भाग।।

उपर के उदाहरण में श्रीराम रामभक्त हनुमान की पूंछ को आग लगाया जाना और लंका का जल जाना आदि का वर्णन  इतना अधिक बढ़ा चढ़ाकर किया गया है  कि यह लोक सीमा ही लांघ गया है। अत: यह  अतिशयोक्ति अलंकार है।

एक अन्य उदाहरण को देखते हैं-

आगे नदिया पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार ।

राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।

उपर के उदाहरण में  महाराणा प्रताप के घोड़े के पराक्रम का वर्णन बहुत अधिक बढ़ा चढ़ाकर किया गया है। अत: यहां पर अतिशयोक्ति अलंकार है।

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